
Pardeshwar Mahadev मंदिर में क्या है खास। (सौ. Gemini)
Pardeshwar Mahadev: भारत में आपको हजारों शिव मंदिर देखने को मिल जाएंगे, लेकिन गुजरात के सूरत शहर में मौजूद पारदेश्वर महादेव मंदिर अपनी विशेषता के कारण दुनिया भर में मशहूर है। सूरत के पाल अटल आश्रम परिसर में स्थित यह मंदिर शिव भक्तों के आस्था का प्रमुख केंद्र है, जहां स्थापित पारदेश्वर महादेव का शिवलिंग पूरी तरह पारे (Mercury) से बना हुआ है। इसका वजन 2,351 किलोग्राम है, जो विश्व का सबसे भारी और अनोखा पारा शिवलिंग माना जाता है। भक्तों का मानना है कि यहां मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है और शिव की कृपा सदैव बनी रहती है।
पारदेश्वर महादेव में स्थापित पारा-निर्मित शिवलिंग हमेशा से शिव भक्तों को आकर्षित करता रहा है। खासकर सावन के पवित्र महीने में देशभर से श्रद्धालु यहां दर्शन करने पहुंचते हैं। पारे से बने होने के कारण ही इस मंदिर को पारदेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि पारे के शिवलिंग की पूजा करने से रोग, दोष और जीवन की परेशानियाँ दूर होती हैं, और मन को शांति प्राप्त होती है।
इस अनोखे मंदिर का पूरा निर्माण वास्तु शास्त्र पर आधारित है। शिवलिंग के निचले भाग में विशेष संरचना रखी गई है जहां तांबे के तार से जुड़ा 3 इंच का पीतल का पाइप नीचे स्थित घंटे से संपर्क करता है। इस घंटे को 45 फीट नीचे जमीन में स्थापित किया गया है, जहां नाभि स्थान जैसा पवित्र बिंदु माना जाता है। इसी विशेष तकनीक के आधार पर 2351 किलो पारे से विशाल शिवलिंग का निर्माण संभव हुआ है।
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जानकारी के अनुसार इस मंदिर की स्थापना साल 1977 में हुई थी, उस समय शिवलिंग का वजन मात्र 51 किलो था। बाद में 2004 में 2351 किलो वजनी पारा शिवलिंग की स्थापना की गई। यह शिवलिंग 12 पारे के ज्योतिर्लिंगों के साथ अत्यंत पवित्र माना जाता है। मंदिर से जुड़े पंडित अरविंदकुमार शास्त्री बताते हैं कि वे बचपन से इस मंदिर की सेवा करते आ रहे हैं और इस शिवलिंग से उनका विशेष भावनात्मक लगाव है।
यह शिवलिंग दुनिया का सबसे भारी पारा-निर्मित शिवलिंग माना जाता है। कुल 2351 किलो में से 1751 किलो शुद्ध पारा उपयोग हुआ है, जबकि नीचे 600 किलो पीतल का मजबूत आधार बनाया गया है। सौराष्ट्र के समर्थ महंत गुरु महादेवगिरि बापू की प्रेरणा और बटुकगिरि स्वामी के प्रयासों से यह अद्भुत शिवलिंग स्थापित किया गया, जो आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की आस्था और वास्तुकला का अनोखा उदाहरण बन चुका है।






