जानिए शिवलिंग का वास्तविक अर्थ (सौ. सोशल मीडिया)
जुलाई महीने से सावन महीने की शुरूआत होने जा रही है जिसमें भगवान शिव की आराधना की जाती है। हिंदू धर्म में ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग का विशेष महत्व है जिसके वास्तविक अर्थ के बारे में शायद ही लोग जानते है। हिंदू धर्म में शिवलिंग की महिमा का बखान किया गया है तो वहीं पर इसकी उत्पत्ति के बारे में बताया गया है।
शिवलिंग को साक्षात आत्म रूप माना गया है नियम पूर्वक शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है। शिव पुराण के मुताबिक 10 तरह के शिवलिंग बताए गए हैं तो वहीं पर 12 ज्योतिर्लिंगों का महत्व बताया गया है।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, ‘शिव’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ‘कल्याणकारी’ या ‘उपकारी’ होता है। वेदों में ही यजुर्वेद की बात की जाए तो, शिव को शांतिदूत माना गया है. ‘शि’ का अर्थ है ‘पापों का नाश करने वाला’, जबकि ‘वा’ का अर्थ है ‘दाता’. संस्कृत में ‘लिंग’ का अर्थ है ‘चिन्ह’. मतलब ‘शिवलिंग’ का अर्थ है ‘प्रकृति के साथ एकीकृत शिव’, यानी ‘परम पुरुष का प्रतीक’।
अन्य अर्थ में शिवलिंग को लेकर बताया गया है कि, शिव का अर्थ शुभ और लिंग का अर्थ ज्योति पिंड होता है। शिवलिंग ब्रह्मांड और उसकी समग्रता का प्रतिनिधित्व करता है, जो शिवलिंग स्वयं प्रगट हुए हैं, उन्हें स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं। असुरों द्वारा स्थापित शिवलिंग को असुर लिंग औऱ देवताओं द्वारा स्थापित शिवलिंग को देवलिंग माना जाता है।
शास्त्रों में माना गया है कि शिवलिंग के वैसे तो कई प्रकार है लेकिन शक्ति और विष्णु शिवलिंग के बारे में बताया गया है। शक्ति शिवलिंग, वह शिवलिंग है जो सीधे जमीन पर स्थित हो या जमीन से सटा हो और जिसके नीचे डमरू की आकृति नहीं हो। वहीं पर विष्णु शिवलिंग की बात की जाए तो, जो शिवलिंग डमरू की आकृति पर टिका होता है वह विष्णु शिवलिंग होता है।
नियम के अनुसार, शक्ति शिवलिंग की पूजा हमेशा बैठकर और विष्णु शिवलिंग की पूजा हमेशा खड़े होकर करनी चाहिए। जानकारी के लिए बताते चलें, शास्त्रों में 5 प्रमुख प्रकार के शिवलिंग का जिक्र है, जिसमें पत्थर से बने शिवलिंग को शैलजा शिवलिंग, रत्नों से बने शिवलिंग को रत्नजा, धातु से बने शिवलिंग को धातुजा, लकड़ी से बने शिवलिंग को दारुजा, और मिट्टी से बने शिवलिंग को मृतिका शिवलिंग कहते हैं।
शास्त्रों में ज्योतिर्लिंग के वास्तविक अर्थ की व्याख्या की गई है। यहां ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का स्वयंभू अवतार होता है यानि भगवान शिव का ज्योति के रूप में प्रकट होना। यह मानव निर्मित ना होतर स्वयंभू अवतरित होते है जिसकी उत्पत्ति के बारे में जानकारी नहीं होती है। ज्योतिर्लिंग, स्वयंभू होने के साथ ही सृष्टि के कल्याण और गतिमान बनाए रखने के लिए स्थापित किए गए हैं। मान्यता है कि इन जगहों पर भगवान शिव ने स्वयं दर्शन दिए हैं और वहां एक ज्योति के रूप में वह उत्पन्न हुए थे। शिव पुराण के अंतर्गत देशभर के 12 ज्योतिर्लिंगों की व्याख्या की गई है।
12 ज्योतिर्लिंगों का शिव पुराण में जिक्र है. ये 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जहां शिव स्वयं लिंग स्वरूप में प्रकट हुए. इनके नाम सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओमकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमाशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, और घृष्णेश्वर आता है।शिवपुराण के मुताबिक ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है. इसलिए सभी ज्योतिर्लिंग शक्ति शिवलिंग हैं।