क्यों ज्यादा बोलना बनता है मजाक का पात्र (सौ.सोशल मीडिया)
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास के एक महान रणनीतिकार और नीतिकार के रूप में जाते है। आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में जीवन को सरल बनाने के लिए कई बातें बताई हैं। उन्होंने अपनी नीतियां में एक प्रमुख विषय जिस पर खास बल दिया वह है मौन और वाणी का संयम।
ये बात सच है कि इंसान की जुबान उसकी पहचान होती है, कुछ लोग जरूरत से ज्यादा बोलते हैं तो कुछ लोग बेहद गंभीर होते हैं। इंसानों की बोलने की शैली उसके व्यक्तित्व के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है, इसलिए जरूरी है कि आप ये जानें कि आप को कब क्या बोलना हैं। यदि आप सोच समझकर और तोल कर नहीं बोलते हैं तो ये आदत आपके लिए मजाक का पात्र बना सकती हैं। ऐसे में आइए जानते है चाणक्य नीति में क्यों ज्यादा बोलने वाले बनते हैं मजाक का पात्र।
चाणक्य नीति के अनुसार, बहुत अधिक बोलने वाले लोग हर बात में अपनी राय देना शुरू कर देते हैं, चाहे उनसे पूछा गया हो या नहीं। ऐसी स्थिति में लोग उनकी बात को गंभीरता से नहीं लेते और उन्हें हर विषय का ज्ञानी या फालतू सलाह देने वाला मान लेते हैं।
चुप रहने वाला व्यक्ति चाहे जितना भी अज्ञानी हो, वह दूसरों को अपनी कमजोरी नहीं दिखाता। वहीं, अधिक बोलने वाला व्यक्ति अपनी बातों में ही अपनी अज्ञानता प्रकट कर बैठता है, जिससे उसका मजाक उड़ता है।
चाणक्य नीति के अनुसार, बहुत अधिक बोलने वाले कई बार खुद को श्रेष्ठ दिखाने की कोशिश में पड़ जाते हैं। यह व्यवहार अहंकारी या घमंडी प्रतीत हो सकता है, जिससे समाज में उन्हें उपहास यानी मजाक का पात्र बना दिया जाता है।
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आचार्य चाणक्य का कहना है कि, मनुष्य के शब्दों में जिम्मेदारी झलकनी चाहिए। अगर आप अपने शब्दों का सही और सटीक इस्तेमाल करेंगे तो उसमें जिम्मेदारी का झलकना स्वाभाविक है। आपके शब्दों को सामना वाला पढ़कर आपकी अपने मन में एक इमेज क्रिएट करता है। इसी वजह से आप जो कुछ भी बोले उसे तोलमोल कर ही बोलें।