ये है प्रदोष व्रत कथा (सौ.सोशल मीडिया)
Shani Pradosh Vrat Katha 2025: आज 4 अक्तूबर को आश्विन माह का अंतिम प्रदोष व्रत है। इस बार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि शनिवार को पड़ रही है। जिसके वजह से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से भगवान शिव के साथ भगवान शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और शनि ग्रह से जुड़ी परेशानियां भी दूर होती हैं। शनि प्रदोष व्रत में कथा और मंत्र जाप करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस व्रत का पाठ करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
ऐसी मान्यता है कि शनि प्रदोष व्रत की पूजा उसकी कथा के बिना अधूरी मानी जाती है। कथा का पाठ करने से व्रत का पूरा फल मिलता है। साथ ही भगवान शिव के साथ शनि देव का भी कृपा होती है। ऐसे में आइए इसकी पावन कथा का पाठ करते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, किसी समय की बात है, अंबापुर गांव में एक गरीब ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का देहांत हो चुका था, इसलिए वह भीख मांगकर अपना और अपने परिवार का पेट पालती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी, तो उसे रास्ते में दो छोटे बच्चे अकेले मिले।
उस ब्राह्मणी महिला को उन दो छोटे बच्चे पर दया आई, और वह उन दोनों बच्चों को अपने घर ले आई और अपने बच्चों की तरह पालने लगी। कुछ समय बाद, ब्राह्मणी उन दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास गई और उनके माता-पिता के बारे में पूछा। ऋषि शांडिल्य ने बताया कि “हे देवी, ये दोनों बालक विदर्भ देश के राजकुमार हैं।
गंधर्व नरेश के हमले के कारण उनका राजपाट छिन गया है और वे राज्य से बेदखल हो गए हैं।” यह सुनकर ब्राह्मणी दुखी हुई और उसने ऋषि से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे इन राजकुमारों को उनका राज्य वापस मिल सके। तब ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को भगवान शिव की पूजा और ‘प्रदोष व्रत’ करने की सलाह दी।
ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने ऋषि के कहे अनुसार पूरी श्रद्धा और लगन से प्रदोष व्रत करना शुरू कर दिया। व्रत के प्रभाव से जल्द ही बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती नाम की एक सुंदर कन्या से हुई। दोनों ने विवाह करने का फैसला किया। अंशुमती के पिता ने जब यह बात सुनी, तो उन्होंने राजकुमारों की मदद के लिए गंधर्व नरेश के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
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युद्ध में राजकुमारों को जीत मिली और प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन्हें उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया। राजकुमारों ने राजगद्दी मिलने पर, उस दयालु ब्राह्मणी को अपने दरबार में एक विशेष स्थान दिया। इस तरह, ब्राह्मणी ने भी सुख-शांति से जीवन जिया और वह भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त बन गई।