
कैसे बने सूर्य मंदिर (सौ. डिजाइन फोटो)
Surya Temple Story: बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश समेत देशभर में छठ पर्व की रौनक देखने के लिए मिल रही है। छठ पर्व पूजा में सूर्य देवता की पूजा करने का महत्व होता है। सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य देवता की पूजा करने से व्रती महिलाओं की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। सूर्य देवता से जुड़ी एक पौराणिक कथा मिलती है। इसके आधार पर ही देश में तीन जगहों पर मंदिर बनाए गए है। यह कहानी ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलती है।
यहां पर ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, रावण के नाना सुमाली ने महादेव से अपनी सुरक्षा का वरदान मांगा था। उस दौरान जब उसे भगवान शिव का वरदान मिला तो उसकी शक्ति से वह और बलवान बन गया। एक समय में तो वह सृष्टि के विनाश पर उतर आया और सूर्यदेव के पास पहुंचने लगा। सुमाली को आकाश की ओर बढ़ने से बचाने के लिए भगवान सूर्य ने उस पर प्रहार किया। सूर्य के तेज और शक्ति के आगे सुमाली कुछ कर नहीं पा रहा था। इसलिए उसने भगवान शिव को पुकारा,वरदान देने की वजह से शंकर भगवान को आना पड़ा इस तरह सूर्य और शिव जी का आमना-सामना हुआ।
माली और सुमाली को आकाश की ओर बढ़ने से बचाने के लिए शिव को सूर्यदेव से युद्ध करना पड़ा. युद्ध के दौरान शिव ने सूर्यदेव पर त्रिशूल फेंका, जिससे उनके तीन टुकड़े हो गये। शंकर भगवान की त्रिशुल से सूर्य देवता को चोट लगी और वे बेहोश हो गए थे, इस दौरान उनके पिता कश्यप क्रोधित हुए और उन्होंने शिव को श्राप दे दिया। श्राप यह था कि शिव भी एक दिन अपने पुत्र पर त्रिशूल चलाएंगे।इसी श्राप के कारण शिव ने बालगणेश पर त्रिशूल से वार कर दिया था।
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जहां सूर्य भगवान के टुकड़े गिरे, आज उसी तीनों जगह पर सूर्य देवता को समर्पित मंदिर बनाए गए हैं। जहां पहला टुकड़ा गिरा है वहां कोणार्क सूर्य मंदिर मनाया गया है. यह ओडिशा राज्य में है। दूसरा टुकड़ा बिहार में है, यहां देवार्क सूर्य मंदिर है और लोलार्क सूर्य मंदिर उत्तर प्रदेश में काशी के पास है।






