
आदि शंकराचार्य जी (सौ.सोशल मीडिया)
Adi Shankaracharya Jayanti : आज देशभर में शंकराचार्य जयंती मनाई जा रही हैं। आदिगुरु शंकराचार्य हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखते हैं। आदि गुरु शंकराचार्य जी को भगवान शिव का ही अवतार माना गया है। श्री आदि शंकराचार्य ने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धान्तों को पुनर्जीवित करने का कार्य किया। उन्होंने चार धामों में की मठों की स्थापना की थी। कहते हैं सनातन धर्म को जिंदा रखने और मजबूती देने का काम आदि शंकराचार्य ने किया।
आदि शंकराचार्य ने ही इन चारों मठों में सबसे योग्य शिष्यों को मठाधीश बनाने की परंपरा शुरु की थी, तब से ही इन मठों के मठाधीश को शंकराचार्य की उपाधि देते हैं। आज इसी कड़ी में आइए जानते हैं शंकर से जगद्गगुरु शंकराचार्य कहलाने वाले इस संन्यासी के जीवन से जड़ी कुछ रोचक कहानियां-
आदि शंकराचार्य जी से जुड़ी कुछ रोचक कहानियां जो इस प्रकार है –
मां के लिए नदी का मोड़ा रुख
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शंकराचार्य जी अपनी माता की बहुत सेवा और सम्मान के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने अपनी माता के लिए गांव से दूर बहने वाली नदी को भी अपनी दिशा मोड़ दिया था। दरअसल, शंकराचार्य जी की माता को स्नान करने के लिए पूर्णा नदी तक जाना पड़ता था, यह नदी गांव से बहुत दूर बहती थी। शंकराचार्य जी की मातृभक्ति देखकर नदी ने भी अपना रुख उनके गांव कालड़ी की ओर मोड़ दिया था।
गरीब ब्राह्मण के घर हुई सोने की वर्षा
दूसरी कथा के अनुसार, शंकराचार्य जी संन्यासी बालक होने की वजह से गांव-गांव भटक कर भिक्षा मांगते थे। एक दिन वह एक ब्राह्मण के घर भिक्षा मांगने पहुंचे। लेकिन वह एक ऐसे ब्राह्मण का घर था जिसके पास खाने तक को कुछ नहीं था।
संन्यासी बालक को देखते ही रोते हुए उस ब्राह्मण की पत्नी ने बालक के हाथ पर एक आंवला रखते हुए अपनी गरीबी के बारे में बताया। महिला को यूं रोता हुआ देख बालक ने मां लक्ष्मी से गरीब ब्राह्मण की सहायता करने के लिए मां लक्ष्मी को याद किया। जिसके बाद प्रसन्न होकर लक्ष्मी माता ने उस निर्धन ब्राह्मण के घर सोने के आंवलों की वर्षा कर दी।
अपनी मां को दिए वचन को किया पूरा
शंकराचार्य जी ने संन्यास लेते समय अपनी मां को वचन दिया था कि वह उनके जीवन के अंतिम समय में उनके पास रहेंगे और खुद उनका दाह-संस्कार भी करेंगे। अपनी मां को दिए वचन को पूरा करने के लिए जब शंकराचार्य मां के अंतिम समय में उनका दाह-संस्कार करने गांव पहुंचे तो लोगों ने यह कहकर उऩका विरोध करना शुरू कर दिया कि संन्यासी व्यक्ति किसी का अंतिम संस्कार नहीं कर सकते हैं।
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लोगों के इस तर्क पर शंकराचार्य जी ने जवाब देते हुए कहा कि जब उन्होंने अपनी मां को वचन दिया था तब वह संन्यासी नहीं थे. उन्होंने अपने घर के सामने ही मां की चिता सजाते हुए उनकी अंतिम क्रिया की. जिसके बाद केरल के कालड़ी में अब घर के सामने दाह-संस्कार करने की पंरपरा बन गई है।






