झूलेलाल जयंती (सौ.सोशल मीडिया)
Cheti Chand 2025: चेटी चंड सिंधी समुदाय का मुख्य पर्व है। इस पर्व को सिंधी समुदाय के लोग बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। इस साल 2025 में चेटी चंड का पर्व 30 मार्च, रविवार को मनाया जाएगा।
आपको बता दें कि, चेटी चंड का पर्व भगवान झूलेलाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र महीने की चंद्र तिथि को मनाया जाता है, क्योंकि भगवान झूलेलाल का जन्म इसी दिन हुआ था। भगवान झूलेलाल को वरुण देव का अवतार माना जाता है और वे सिंधी समाज के प्रमुख देवता हैं। इस दिन लोग विशेष पूजा-अर्चना करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और शोभायात्रा निकालते हैं।
यह पर्व सत्य, अहिंसा, भाईचारे और प्रेम का संदेश देता है, जो आज भी सिंधी समाज के मूल जीवन मूल्यों में शामिल हैं। इस पर्व के दौरान लकड़ी का मंदिर बनाकर उसमें ज्योति प्रज्वलित की जाती है, जिसे बहिराणा साहब कहा जाता है। यह पर्व समाज में एकता और आस्था को प्रबल करने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। ऐसे में आइए जानते हैं चेटी चंड कब है और इससे जुड़ी बातें –
कब मनाई जाएगी चेटी चंड
चेटी चंड 2025 तिथि
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 29 मार्च 2025 को सायं 04:27 पर
प्रतिपदा तिथि समाप्त: 30 मार्च 2025 को दोपहर 12:49 पर
चेटी चंड पूजा मुहूर्त: 30 मार्च 2025 को सायं 06:38 से सायं 07:45 बजे तक
यह दिन भगवान झूलेलाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है, और सिंधी समाज में बहुत श्रद्धा और उत्साह के साथ इसे मनाया जाता है।
जानिए झूलेलाल जयंती का महत्व
झूलेलाल जयंती सिंधी समाज के प्रमुख आराध्य देव भगवान झूलेलाल के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। इसे चेटी चंड के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब सिंध क्षेत्र में मिरखशाह नामक शासक ने जबरन धर्म परिवर्तन का आदेश दिया तब भक्तों की प्रार्थना के फलस्वरूप भगवान झूलेलाल प्रकट हुए थे और धर्म की रक्षा की थी।
इस दिन शोभायात्राएं निकाली जाती हैं और झूलेलाल के भजन-कीर्तन गाए जाते हैं। ये त्योहार समाज में एकता, भक्ति और धर्म के प्रति आस्था को प्रबल करने के लिए प्राचीन समय से मनाया जा रहा है।
ऐसे मनाते हैं सिंधी समुदाय झूलेलाल जयंती
झूलेलाल जयंती, जिसे चेटी चंड भी कहा जाता है, को सिंधी समुदाय बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाता है। इस दिन की विशेष पूजा और धार्मिक अनुष्ठान के जरिए भगवान झूलेलाल के प्रति अपनी आस्था और श्रद्धा को प्रकट किया जाता है।
इस दिन सिंधी समुदाय के लोग लकड़ी से एक छोटा सा मंदिर बनाते हैं, जिसे “बहिराणा साहब” कहा जाता है। यह मंदिर भगवान झूलेलाल की पूजा का केंद्र होता है।
मंदिर में एक लोटे में जल भरकर उसे रखा जाता है, साथ ही दीपक (ज्योति) जलाया जाता है। यह पूजा जल के देवता भगवान झूलेलाल की पूजा का प्रतीक होती है, क्योंकि भगवान झूलेलाल को जल देवता माना जाता है।
इस दिन विशेष शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं, जिसमें लोग भगवान झूलेलाल के भजन और कीर्तन गाते हैं। यह यात्रा समाज में एकता और भाईचारे का संदेश देती है।
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झूलेलाल जयंती के दिन विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसे श्रद्धालु आपस में बांटते हैं। यह प्रसाद समाज में एकता और खुशी का प्रतीक होता है।
सिंधी समुदाय के लोग पवित्र जल की पूजा करते हैं, क्योंकि जल के बिना जीवन संभव नहीं है। यह पूजा जीवन के महत्व और जल देवता के प्रति आस्था को प्रकट करती है।