12 प्रकार के होते है श्राद्ध (सौ.सोशल मीडिया)
Pitru Paksha Significance: पितृपक्ष सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता हैं। यह वह समय होता है जब हम अपने पूर्वजों को श्रद्धा, सम्मान और कृतज्ञता के साथ याद करते हैं। मान्यता है कि इस अवधि में पितर यमलोक से धरती पर आते हैं और अपनी संतान की भक्ति-भावना से प्रसन्न होकर उन्हें सुख, समृद्धि और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
हर साल पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलता हैं। इस बार पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025 से हो रही है जो आगामी 21 सितंबर 2025 तक चलेगी।
यह अवधि पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। पितृजन्य समस्त दोषों की शांति के लिए पूर्वजों की मृत्यु तिथि के दिन श्राद्ध कर्म किया जाता है। इसमें ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है। भविष्य पुराण में 12 प्रकार के शास्त्रों का उल्लेख मिलता है, जिन्हें पितरों की तृप्ति और उनकी कृपा प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है। ये 12 प्रकार इस प्रकार हैं। आइए जानते हैं श्राद्ध कितने प्रकार के होते हैं।
भविष्य पुराण में 12 प्रकार के श्राद्ध क्रम का वर्णन किया गया है जिसका अलग अलग महत्व है।
ज्योतिषयों के अनुसार, भविष्य पुराण में नित्य श्राद्ध का वर्णन किया गया है यह श्राद्ध नित्य श्राद्ध कहलाता है क्योंकि यह श्राद्ध जल और अन्न द्वारा प्रतिदिन होता है। श्रद्धा भाव से माता-पिता एवं गुरुजनों के नियमित पूजन को नित्य श्राद्ध कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि अन्न के अभाव में जल से भी श्राद्ध किया जा सकता है।
काम्य श्राद्ध किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, किसी की लंबी उम्र, पुत्र प्राप्ति या जीवन में सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिए। इसे विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जाता है।
पितृ पक्ष में किया जाने वाला श्राद्ध ‘नैमित्तिक श्राद्ध’ कहलाता है।
मुंडन,विवाह,उपनयन आदि के अवसर पर किया जाने वाला श्राद्ध ‘वृद्धि श्राद्ध’ कहलाता है इसे नान्दीमुख भी कहते हैं।
यह श्राद्ध मृत्यु के 12वें दिन या कुछ स्थानों पर 13वें दिन किया जाता है। इस श्राद्ध से पितरों का सम्मिलन पूर्वजों की पिंडियों में होता है। इसे करने से पितरों को मोक्ष प्राप्ति में सहायता मिलती है।
पार्वण श्राद्ध अमावस्या, पूर्णिमा या संक्रांति जैसे विशेष दिनों में किया जाता है। इसे पारिवारिक श्राद्ध भी कहा जाता है, जिसमें सभी पितरों के लिए तर्पण और पूजा की जाती है।
गौशाला में वंशवृद्धि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध ‘गोष्ठी श्राद्ध’ कहलाता है।
यह श्राद्ध पवित्रता और शुद्धि के लिए किया जाता है। इसे तब किया जाता है जब किसी अशुद्ध या अपवित्र स्थिति के बाद शुद्धिकरण की आवश्यकता होती है। यह घर या परिवार के शुद्धिकरण के लिए महत्वपूर्ण होता है।
गर्भाधान,सीमंत,पुंसवन संस्कार के समय किया जाने वाला श्राद्ध कर्म ‘कर्मांग श्राद्ध’ कहलाता है।
सप्तमी तिथियों में हविष्यान्न से देवताओं के लिए किया जाने वाला श्राद्ध ‘दैविक श्राद्ध’ माना गया है।
तीर्थ यात्रा पर जाने से पहले और वहां पर किए जाने वाले श्राद्ध को ‘यात्रार्थ श्राद्ध’ कहा जाता है।
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अपने वंश और व्यापार आदि की वृद्धि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध ‘पुष्टयर्थ श्राद्ध’ की श्रेणी में आता है।