कौन होते है अघोरी बाबा (सौ.सोशल मीडिया)
Mahakumbh 2025: उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का आगाज जहां पर होने वाला है वहीं पर इस धार्मिक समागम में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में साधु- संत और श्रद्धालु पहुंचते है। नागा साधु यहां पर जहां महाकुंभ के हर साल आकर्षण बने होते है तो इनमें अघोरी बाबा भी शामिल होते है।
अघोरी नाम सुनकर रह कोई उनके गुस्से और शवों से नाता जोड़ लेते है। अघोरी बाबाओं को काशी के मणिकर्णिका घाट पर शवसाधना करते देखा गया है। आखिर कौन होते है ये अघोरी और भगवान शिव से इनका क्या है नाता चलिए जानते है…
अघोरी साधुओं का नाता भगवान शिव से जाना जाता है कहते है भगवान शिव ने अघोर पंथ की स्थापना की थी। यानि उत्तपत्ति करने वाला शिव ही है मान्यता है कि भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान के अंश दत्तात्रेय भगवान ने स्थूल रूप से अवतार लिया था. इसलिए अघोरी भगवान भोलेनाथ के अनुयायी माने जाते हैं। वहीं पर दत्तात्रेय को अघोर शास्त्र का गुरु भी माना जाता है। जिस तरह से अघोरी पंथ का भगवान शिव से नाता है तो वहीं पर इधर इनकी मान्यता देखने के लिए मिलती है।
यहां पर अघोर पंथ की स्थापना और गुरु के बारे में तो आप जान चुके है लेकिन अघोर संप्रदाय में बाबा कीनाराम की पूजा की जाती है जिनका जन्म यूपी के चंदौली जिले में साल 1601 ईस्वी में हुआ था। बचपन से ही बाबा वैराग्यता की ओर आकर्षित थे। जहां पर मोह-माया त्याग चुके बाबा कीनाराम एक बार घूमते-घूमते वर्तमान बलिया जिले में कारों गांव के पास कामेश्वर धाम पहुंच गए. वहां उन्होंने रामानुजी संप्रदाय के संत शिवराम को गुरु बनाया. इसके बाद बाबा कीनाराम आगे चल दिए। यहां पर बाबा कीनाराम गुजरात के गिरनार पर्वत में बसने के बाद काशी में स्थापित हो गए और अपने अघोर संप्रदाय का प्रचार किया।
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आपको बताते चलें कि, बाबा कीनाराम को तीन प्रकार की साधनाओं का धनी माना जाता है। यहां पर घाट पर पारंपरिक रूप से बाबा अघोरी श्मशान घाट पर शवों के साथ साधना करते है। इस तीन आराधना में एक आराधना होती है श्मशान साधना. दूसरी को शिव साधना और तीसरी को शव साधना कहा जाता है।मान्यता के अनुसार शव के ऊपर पैर रखकर जब अघोरी साधना करते हैं तो उसे शिव और शव साधना कहा जाता है. इस साधना का मूल है कि शिव की छाती पर माता पार्वती का पैर रखा माना जाता है. इस साधना में शव को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है. यह साधना अकेले में की जाती है. तीसरी साधना यानी श्मशान साधना में परिवार के सदस्यों को भी शामिल किया जा सकता है. इसके दौरान शव के स्थान पर शवपीठ की पूजा होती है।
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इस जगह पर साधना के दौरान प्रसाद के रूप में मांस-मदिरा की जगह पर मावा चढ़ाया जाता है। बताया जाता है कि ऐसी साधनाएं असोम में गुवाहाटी के पास स्थित सिद्ध कामाख्या पीठ के श्मशान, पश्चिम बंगाल में तारापीठ के श्मशान, महाराष्ट्र में नाशिक के त्रयंबकेश्वर और मध्य प्रदेश में उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्मशान में की जाती हैं।
इन अघोरी बाबाओं को अक्सर रूखे स्वभाव में ही देखा गया है यानि ऐसे बाबा अपनी साधना में कोई विघ्न डाले इसे मंजूर नहीं कर पाते है। आम लोगों को भले ही ये ऊपर से रूखे दिखते हैं लेकिन इनके मन में हमेशा जनकल्याण की ही भावना रहती है। इसके अलावा बताया जाता है कि, कोई अघोरी किसी इंसान पर खुश हो जाते हैं तो अपनी सिद्धि के जरिए शुभ फल देने में कभी पीछे नहीं हटते, तांत्रिक क्रियाओं के रहस्य की जानकारी भी दे सकते है। इसे लेकर एक कहानी प्रचलित है कि, एक बार बाबा कीनाराम के आश्रम से होकर अपने हाथी पर सवार काशी नरेश निकल रहे थे।
उन्होंने बाबा कीनाराम को अघोरी वेश में देखा तो उपेक्षा भरी नजर थी. बाबा यह समझ गए और अपने आश्रम की एक दीवार को देखकर कहा कि चल आगे. चमत्कार यह था कि वह दीवार काशी नरेश के हाथी के आगे-आगे चलने लगी. इस पर काशी नरेश को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने बाबा कीनाराम से माफी मांग ली