किसान (सोर्स: सोशल मीडिया)
Wardha Farmer Loss News: वर्धा जिले की कारंजा तहसील में पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। नुकसान का पंचनामा करने के लिए मोबाइल ऐप की आवश्यकता होती है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर किसानों के पास स्मार्टफोन नहीं हैं, जिससे वे इस प्रक्रिया से वंचित रह जाते हैं। वहीं, संबंधित विभाग के अधिकारी भी मौके पर आकर पंचनामा करने में कोई खास रुचि नहीं दिखा रहे हैं। इस स्थिति में किसानों की हालत बेहद चिंताजनक हो गई है।
पिछले तीन-चार वर्षों से मौसम की मार के कारण किसानों की फसलें बर्बाद हो रही हैं। इस साल भी मौसम में असामान्यता के कारण किसानों को ‘अस्मानी’ और ‘सुल्तानी’ दोनों ही संकटों का सामना करना पड़ रहा है।
खरीफ सीजन की शुरुआत में बारिश नहीं होने से किसानों को दुबारा बुवाई करनी पड़ी और अब पिछले कई दिनों से रुक-रुक कर हो रही भारी बारिश के कारण सोयाबीन, कपास, तुअर, फल, और सब्जियों की फसलें पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी हैं।
किसान अपने खेतों की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा। उनके सामने कैसे जियें यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। ऊपर से माता-पिता की बीमारी, बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य जैसी समस्याओं ने उनकी परेशानी और बढ़ा दी है।
पिछले विधानसभा चुनाव में सरकार ने किसानों को कर्जमाफी का वादा किया था, लेकिन आज तक अधिकतर किसानों का ‘सातबारा’ कोरा नहीं हुआ है। किसानों को उम्मीद थी कि वे पूरी तरह से कर्जमुक्त होंगे, लेकिन अब उनकी वह उम्मीद भी खत्म होती नजर आ रही है।
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ऐसे में किसानों की मांग है कि सरकार को जल्द से जल्द सभी किसानों की संपूर्ण कर्जमाफी करनी चाहिए, ताकि आत्महत्या जैसे कदमों से बचा जा सके। क्योंकि आज की स्थिति में किसान के लिए जीना मुश्किल हो गया है।
पिछली सरकार ने अतिवृष्टि से प्रभावित किसानों को प्रति हेक्टेयर 13,600 की सहायता तीन हेक्टेयर तक देने का निर्णय लिया था। लेकिन चर्चा है कि वर्तमान सरकार ने यह सीमा घटाकर दो हेक्टेयर कर दी है और सहायता राशि को भी घटाकर 6,800 प्रति हेक्टेयर कर दिया है। इससे किसानों को भारी आर्थिक झटका लगने वाला है और इसको लेकर गांवों में काफी नाराजगी देखी जा रही है।
ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार आखिर किसानों की परीक्षा कब तक लेगी? किसानों की स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। अगर सरकार ने जल्द ठोस कदम नहीं उठाए, तो आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है। किसानों की यह पीड़ा अब केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्तर पर भी चिंता का विषय बन गई है।