पंकज भोयर और सीएम देवेंद्र फडणवीस (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Wardha Politics: वर्धा के बाद सीएम ने उनके कंधे पर भंडारा जिले के पालकमंत्री पद की जिम्मेदारी देकर एक तरह से उन पर अपना विश्वास पुन: जताया है। डॉ. पंकज भोयर अपना राजनीतिक कैरियर बीते 25 वर्ष में बनाया है। आम परिवार का बेटा राजनीति के पायदान की सीढ़ियां निरंतर चढ़ते हुए दिखाई दे रहा है। डॉ. भोयर 1999 में मराठा सेवा संघ के माध्यम से सामाजिक कार्य में सक्रिय हुए।
जिसके बाद कांग्रेस नेता प्रभा राव से नजदीकी बनाते हुए युवक कांग्रेस का जिलाध्यक्ष पद प्राप्त कर राजनीति में अपनी जड़े मजबूत करने का प्रयास किया। इसी दौरान उनके मन में विधायक बनने की मंशा जागी। परंतु, कांग्रेस के कुछ नेताओं को यह बात रास गुजरी नहीं। उन्होंने उनकी महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाने की कवायद कांग्रेस के भीतर ही शुरू हुई। 2009 में भोयर ने वर्धा से विधानसभा लड़ने की तैयारी की थी।
परंतु वरिष्ठ स्तर पर प्रतिसाद नहीं मिलने के कारण उनका सपना अधूरा रहा। किंतु उन्होंने हार न मानते हुए कोशिशे जारी रखी। इस दौरान भोयर ने प्रभा राव गुट से दूरी बनाते हुए 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान दत्ता मेघे व सागर मेघे से नजदीकियां बढ़ाई। यह निर्णय उनके राजनीतिक जीवन का टर्निंग पाइंट रहा। लोकसभा चुनाव में मेघे की पराजय हुई़ परंतु भोयर ने मेघे परिवार का साथ नहीं छोड़ा। चुनाव के उपरांत मेघे ने परिवार ने भाजपा का दामन थामा।
मात्र भाजपा प्रवेश को लेकर मेघे गुट के कुछ नेताओं ने अपना अलग रास्ता पकड़ा। तो भोयर ने मेघे परिवार पर विश्वास जताते हुए भाजपा में प्रवेश किया। यहीं निर्णय उन्हें विधानसभा तक पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण रहा। 2014 में भाजपा ने मेघे व सांसद रामदास तडस के कारण डॉ. पंकज भोयर को वर्धा विधानसभा से प्रत्याशी बनाया। इसके बाद निरंतर तीन चुनाव जीतकर भोयर ने अपनी पकड़ मजबूत बनाई। विधायक बनने के बाद पार्टी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए उन्होंने वरिष्ठ स्तर पर अपनी छवि निर्माण की। जिसका फायदा उन्हें निरंतर मिलता हुआ दिखाई दे रहा है।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस व राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले के साथ अच्छे संबंध होने के कारण राज्य मंत्रिमंडल में उन्हें स्थान दिया गया। पांच विभागों की जिम्मेदारी उन पर सौंपी गई। स्वयं मुख्यमंत्री ने अपने गृह विभाग की जिम्मा उन्हें दिया। राज्यमंत्री के साथ वर्धा के पालकमंत्री पद पर उनकी नियुक्ति की गई। उनके कार्य को देखते हुए गोंदिया जिले के संपर्क मंत्री के रूप में और एक जिम्मेदारी दी गई।
दो दिनों पूर्व मुख्यमंत्री ने उनके कंधे पर और एक जिम्मेदारी डालते हुए उन्हें भंडारा जिले का पालकमंत्री बनाया। राज्यमंत्री होने के बावजूद भोयर के कंधे पर दो जिलों के पालकमंत्री पद की जिम्मेदारी आयी है। वर्तमान में राज्य के तीन कैबिनेट मंत्रियों के पास दो जिले का पालकमंत्री पद है। ऐसे में राज्य मंत्री भोयर को यह जिम्मेदारी मिलने के कारण उनका राजनीतिक दबदबा विदर्भ के राजनीति में बन रहा है।
यह भी पढ़ें – मछुआरों तक योजनाएं पहुंचनी चाहिए, 50 हजार तक कर्ज उपलब्ध कराने के निर्देश, पंकज भोयर ने की समीक्षा
विदर्भ के एक बड़े नेता के रूप में उनकी छवि निर्माण करने का प्रयास भाजपा द्वारा किया जा रहा है। एक कार्यशील मंत्री के रूप में उन्होंने बीते आठ माह में अपनी छवि बनाई है। सबको साथ लेकर चलने वाले व गठबंधन के सभी दलों के साथ अच्छा तालमेल बनाने वाले मंत्री होने की बात स्वयं एकनाथ शिंदे ने की थी। वहीं हाल ही में उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने भी उनके कार्य कर सराहना की थी। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है की, उनकी राजनीतिक कद निरंतर बढ़ता जा रहा है।