गांधीवादी आखिर क्यों हुए नाराज़... (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Wardha News: आर्वी से भाजपा विधायक सुमित वानखेड़े ने आरोप लगाया था कि माओवादी समर्थक गांधीवादी संस्थाओं में घुसपैठ कर चुके हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी सार्वजनिक रूप से इस बयान का समर्थन किया था। हालांकि, इस बयान पर गांधीवादी हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं। इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। अब जन आंदोलन की राष्ट्रीय समन्वय समिति ने अपना पक्ष रखते हुए एक पर्चा जारी किया है। इसमें विधायक और मुख्यमंत्री को चुनौती भी दी गई है।
इस राष्ट्रीय समिति ने स्पष्ट किया है कि 62 गांधीवादी संस्थाओं में माओवादी विचारधारा वाले लोगों के आने-जाने के आरोप हैं। हालांकि, किसी भी संस्था का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इसलिए, वर्धा जिले में आने वाली ऐसी सभी संस्थाएं संदेह के घेरे में आती हैं। यह अपमानजनक है। हम इस गैरजिम्मेदार और निराधार बयान की निंदा करते हैं। आरोप लगाने के बाद सबूत देना उनकी ज़िम्मेदारी है।
भारत जोड़ो अभियान में भी ऐसा ही आरोप लगाया गया था कि वे नक्सली और अराजकतावादी हैं। उस संबंध में भी कोई तथ्य नहीं दिए गए थे। अब, 62 आरोपी संस्थाओं के नाम, उनके माओवादी संपर्क और सबूत दिए जाने चाहिए। संस्थाएं किसी भी जांच में सहयोग करेंगी। सार्वजनिक प्रमाण दें कि बयान सत्य है या बयान वापस ले लें, यह इस पत्र में स्पष्ट किया गया है।
हाल ही में जन सुरक्षा विधेयक पारित किया गया है। ऐसा कहा जा रहा है कि इसका उद्देश्य नक्सली और उग्र वामपंथी संगठनों को ख़त्म करना है। जन आंदोलन समिति ने मुख्यमंत्री को भेजे एक पत्र में आग्रह किया है कि इन शब्दों को उचित रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए।
ऐसी स्थिति में, यह बेहद अपमानजनक और निंदनीय है कि मुख्यमंत्री स्वयं उन गांधीवादी संस्थाओं पर पहला प्रहार करें जिन्होंने गांधीजी के रचनात्मक कार्यों को आत्मसात किया है। क्या भारतीय जनता पार्टी सरकार गांधीजी के सत्य, अहिंसा और न्याय के मूल्यों के आधार पर काम करने वाली संस्थाओं के अस्तित्व को ख़तरनाक मानती है? यह सवाल उठाया गया।
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पंढरपुर गांव के खिलाफ भी इसी तरह के बेबुनियाद आरोप लगाए गए। समानता का पाठ पढ़ाने वालों के खिलाफ संदेह का माहौल बनाने की कोशिश की गई। इसलिए मुख्यमंत्री को इन आरोपों को साबित करना चाहिए या खेद व्यक्त करना चाहिए। उन्हें इन्हें वापस लेना चाहिए। पत्र में स्पष्ट किया गया है कि कोई भी संदिग्ध जनविरोधी कानून नहीं लाया जाना चाहिए। महाराष्ट्र की जनता से भी अपील की गई है कि वे सरकार के इस जनविरोधी कदम को पहचानें और समय रहते इसका विरोध करें।
राज्य समन्वयक प्रसाद बागवे, पूनम कनौजिया, सुजय मोरे, इब्राहिम खान, संजय रेंदालकर, इला दलवई, सीरत सातपुते, शिवा दुबे और अन्य, साथ ही राज्य सलाहकार जगदीश खैरालिया, सदाशिव मगदुम, राजेंद्र बहलकर, विनय आरआर, डॉ. सुगन बरंथ ने पत्र को मंजूरी दे दी है। राष्ट्रीय प्रतिनिधि सुहास कोल्हेकर एवं राष्ट्रीय संयोजक युवराज गटकल, संजय मान. जा., सुनीति सु. आर ने इस पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।