कॉन्सेप्ट फोटो (डिजाइन)
मुंबई: लगातार फसल खराब होने, अनियमित मौसम और सीमित उपजाऊ भूमि के कारण पारंपरिक खेती पर निर्भर रहना जोखिम भरा हो सकता है। ऐसे में, कम पानी में फलने-फूलने वाली तुती (मलबरी) की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक और स्थायी कृषि विकल्प के रूप में उभर रही है। राज्य सरकार, केंद्र सरकार के सहयोग से, विदर्भ में रेशम की खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू कर रही है।
इस पहल के तहत मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रेशम उद्योग को और अधिक बढ़ावा देने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया है कि केंद्र सरकार से मिलने वाले फंड की प्रक्रिया तेजी से पूरी की जाए और प्रस्ताव जल्द भेजे जाएं।
राज्य सरकार, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के मार्गदर्शन में, भारतीय कृषि उद्योग फाउंडेशन (BAIF) के साथ मिलकर तुती और टसर रेशम उद्योग के समग्र विकास के लिए काम कर रही है, जहां रेशम निदेशालय के कार्यालय उपलब्ध नहीं हैं, वहां विशेष रूप से इस योजना को लागू किया जाएगा।
बीएआईएफ ने तुती की खेती, अंडे से कोष (ककून) उत्पादन, और रेशम उद्योग से जुड़े अन्य प्रसंस्करण कार्यों के लिए एक विस्तृत योजना प्रस्तुत की है। सरकार इस उद्योग को बढ़ावा देकर विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने का लक्ष्य रखती है। इस संदर्भ में, पुणे जिले के उरुली कांचन में स्थित बाएएफ केंद्र का दौरा कर आगे की रणनीति तय की गई है।
राज्य सरकार रेशम उद्योग को वन संरक्षण से जोड़ने के प्रयास कर रही है। वन विभाग तुती, ऐन और अर्जुन वृक्षों की खेती में सहायता करेगा, जो रेशम कीट पालन के लिए आवश्यक हैं। इसके अलावा, जोमैटो और जेप्टो जैसी कंपनियां अपनी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) योजनाओं के तहत आदिवासी क्षेत्रों में तुती की खेती को वित्तीय सहायता प्रदान करेंगी।
वन अधिकारियों और रेशम उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों को विशेष निर्देश दिए गए हैं कि वे टसर रेशम कीट पालन में किसानों को आने वाली समस्याओं का समाधान करें। यदि किसी योजना के लिए फंड लंबित है, तो मुख्यमंत्री कार्यालय आवश्यक कदम उठाएगा।
महिलाओं और आदिवासी समुदायों की आय बढ़ाने के लिए पांच साल की योजना बनाई गई है, जिससे 10,000 किसानों को लाभ मिलेगा। जिला वार्षिक योजना के तहत, तुती और टसर रेशम पालन करने वाले किसानों को 75% तक की सब्सिडी दी जाएगी।
इसके अलावा, अध्ययन दौरे और 15-दिन के तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। रेशम उत्पादक किसानों को प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन अनुदान, ग्रामीण रोजगार सहायता और आधुनिक उपकरणों के लिए सब्सिडी प्रदान की जाएगी। मल्टी-एंड रीलींग यूनिट और ऑटोमेटिक रीलींग यूनिट स्थापित करने के लिए प्रति किलो 100 से 150 रुपए तक की सब्सिडी दी जाएगी।
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केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर आधुनिक तकनीक और विशेषज्ञ मार्गदर्शन को लागू कर रही हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय आदिवासी और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए विशेष प्रयास कर रहा है।