
मनपा चुनाव से पहले महायुति पर संशय
Mira Bhayandar Politics: मीरा-भाईंदर महानगरपालिका चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे शहर की राजनीति में हलचल तेज होती जा रही है। हालांकि, अब तक के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि यहां आमतौर पर चुनाव से पहले औपचारिक गठबंधन नहीं हुए हैं, बल्कि चुनाव परिणाम आने के बाद ही सत्ता के समीकरण तय होते रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार भी यही परंपरा दोहराई जा सकती है।
शुक्रवार को भाजपा विधायक नरेंद्र मेहता ने एक पत्रकार परिषद में महायुति को लेकर अपनी पार्टी की स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि गठबंधन तभी संभव है, जब दोनों दलों को इसकी समान आवश्यकता हो। मेहता ने शिवसेना के समक्ष कुछ शर्तें भी रखीं। इनमें शिवसेना में गए भाजपा कार्यकर्ताओं की वापसी तथा शिवार गार्डन को बैंकेट हॉल की बजाय पुनः सार्वजनिक उद्यान के रूप में विकसित करने की मांग शामिल है। उनका कहना था कि यह गार्डन जनता की संपत्ति है और भाजपा ने इसे उद्यान के रूप में बनाए रखने का वादा किया है।
भाजपा विधायक ने दावा किया कि पिछले सात वर्षों में मीरा-भाईंदर की आबादी लगभग 2.5 लाख बढ़ी है, जिससे पार्टी का जनाधार मजबूत हुआ है। उनके अनुसार, भाईंदर पश्चिम में भाजपा को किसी गठबंधन की आवश्यकता नहीं है, जबकि मीरा रोड के शांति नगर क्षेत्र में कांग्रेस से सीधा मुकाबला है। भाईंदर पूर्व में केबिन रोड से जेसल पार्क तक का क्षेत्र भाजपा के लिए अनुकूल बताया गया।
मेहता ने स्पष्ट किया कि इन क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सीटों पर यदि शिवसेना महायुति के लिए तैयार होती है, तभी गठबंधन की संभावना बन सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि महायुति से शिवसेना को कुछ सीटों का लाभ हो सकता है, जबकि भाजपा को इससे विशेष फायदा नहीं दिखता। उनके अनुसार, भाजपा के पास 66 सीटें हैं, आठ सीटें राकांपा को दी गई हैं और शेष 21 सीटों पर चर्चा की गुंजाइश है।
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मीरा-भाईंदर नगरपालिका और महानगरपालिका के अब तक हुए छह चुनावों में शायद ही कोई उदाहरण मिलता है, जब सभी प्रमुख दलों ने चुनाव से पहले औपचारिक गठबंधन कर मैदान में उतरने का फैसला किया हो। अधिकांश मामलों में नतीजे आने के बाद, स्पष्ट बहुमत न मिलने पर गठबंधन और समर्थन की राजनीति सामने आई है। इसी अनुभव के आधार पर माना जा रहा है कि आगामी चुनाव में भी तस्वीर बहुत अलग नहीं होगी।
दूसरी ओर, विपक्षी खेमे में भी हलचल तेज है। कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद), मनसे और बहुजन विकास आघाड़ी जैसे दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने बिखरे मतों को एकजुट करने की है। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, यदि इन दलों के बीच न्यूनतम सहमति बनती है, तो वे साझा रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतर सकते हैं। कुल मिलाकर, मीरा-भाईंदर की सियासत एक बार फिर उसी मोड़ पर खड़ी दिखाई देती है, जहां चुनाव से पहले गठबंधन को लेकर असमंजस है और असली राजनीतिक गणित चुनाव परिणामों के बाद तय होने की संभावना अधिक है।






