ब्रह्मोस के पूर्व इंजीनियर निशांत अग्रवाल (फोटो सोशल मीडिया)
नागपुर. ब्रह्मोस मिसाइल की गोपनीय जानकारी पाकिस्तान के आईएसआई एजेंट को देने के मामले में लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद हाल ही में जिला सत्र न्यायालय ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिक रहे निशांत अग्रवाल को उम्र कैद की सजा सुनाई। जिला सत्र न्यायालय के इसी आदेश को चुनौती देते हुए सजा रद्द करने की मांग कर निशांत ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिका पर चली लंबी बहस के बाद शुक्रवार को हाई कोर्ट की ओर से फैसला सुनाया गया जिसमें कोर्ट ने पूरे मामले को देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताते हुए सजा को निलंबित करने और जमानत पर मुहर लगाने से साफ इनकार कर दिया। निशांत की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दवे और सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील अनूप बदर ने पैरवी की।
कोर्ट ने आदेश में कहा कि यह मुद्दा मुख्य रूप से देश की सुरक्षा और संरक्षा से संबंधित है जिसे गंभीरता से देखा जाना चाहिए। अपराध का प्रभाव राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। हमारे विचार में जब राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल उठता है तो यह जघन्य हत्या के मामलों से भी अधिक गंभीर होता है। इन परिस्थितियों में राष्ट्रीय सुरक्षा और सुरक्षा को जोखिम में नहीं डाला जा सकता है। निचली अदालत ने सभी तथ्यों पर गौर करने के बाद उचित फैसला किया है। फैसले में किसी तरह की खामी नहीं है। ऐसे में आवेदन खारिज करने के आदेश जारी किए।
एटीएस की चार्जशीट का हवाला देते हुए बताया गया कि निशांत के लैपटॉप और हार्डडिस्क का गहन जांच की गई। लैपटॉप में खुफिया और प्रतिबंधित रिकॉर्ड पाया गया था। इस तरह की 19 फाइल्स निशांत के लैपटॉप में थीं। आश्चर्यजनक यह है कि उसने लैपटॉप में एक सॉफ्टवेयर डाल रखा था। सॉफ्टवेयर के जरिए लैपटॉप से खुफिया और गंभीर विस्तृत जानकारी विदेशों में बैठे आतंकी संगठनों को मिल जाती थी। प्राथमिक स्तर पर पाया गया कि 4,47,734 कैच फाइल्स इस लैपटाप और हार्डडिस्क से लीक हुई है। इस तरह के कई गंभीर और पुख्ता सबूत उपलब्ध है। पूरा मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है जो काफी गंभीर है। अभियोजन पक्ष की मानें तो निशांत फेसबुक के जरिए पाकिस्तान स्थित इस्लामाबाद से ऑपरेट होने वाले फेसबुक अकाउंट से जुड़ा हुआ था। शेजल कपूर नामक युवती द्वारा भेजे गए एप्लीकेशन को निशांत ने कम्प्यूटर में डाउनलोड कर लिया था जिसके माध्यम से विदेशी खरीददार ब्रह्मोस मिसाइल से संबंधित खुफिया जानकारी को सहजता से प्राप्त कर सकते थे।
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-अभियोजन पक्ष के अनुसार देश विघातक गतिविधियों में फंसाने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ हनी ट्रैप लगाकर उसे जांल में फंसाया गया। कुरुक्षेत्र एनआईटी से 2013 की बैच के टॉपर निशांत को डीआरडीओ में वैज्ञानिक के पद पर नियुक्ति मिली थी।
-अगस्त 2012 को प्लेसमेंट के बाद उसे नागपुर यूनिट में भेजा गया। जहां ब्रह्मोस यूनिट में कार्यरत था। सरकारी पक्ष के अनुसार यह देश की सुरक्षा का प्रश्न है जिसे सहजता से नहीं लिया जा सकता है।
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निशांत की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील ने कहा कि लैपटॉप में जो खुफिया फाइल्स पाई गई हैं वह प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने के लिए रखी गई थीं। यहां तक कि ये दस्तावेज वरिष्ठ सहकर्मी ऐलन अब्राहम ने ही उपलब्ध कराया था। याचिकाकर्ता ने सामान्य रूप से फेसबुक पर स्वीकृत होने वाले अनुरोध को स्वीकार कर शेजल और अन्य युवती के सम्पर्क में आ गया। याचिकाकर्ता ने गलती से मालवेयर डाउनलोड कर लिया था। इस संदर्भ में उसे कोई जानकारी नहीं थी। याचिकाकर्ता के खिलाफ ऐसे कोई तथ्य नहीं हैं कि उसने जानबूझकर देश की सुरक्षा को खतरे में डालने के इरादे से खुफिया जानकारी प्राप्त की थी।