
तेंदुआ (सोर्स: सोशल मीडिया)
Leopard Attack In Manchar: आंबेगांव तहसील के मंचर और आसपास के क्षेत्रों में तेंदुए के बढ़ते हमलों ने न केवल वन विभाग, बल्कि पुलिस प्रशासन के लिए भी एक गंभीर संकट खड़ा कर दिया है।
जब भी तेंदुए के हमले में किसी की जान जाती है, तो संबंधित क्षेत्र में शोक और दहशत का माहौल तुरंत उग्र हो जाता है और आक्रोश में बदल जाता है। शोकाकुल परिवार और डरे हुए ग्रामीणों का गुस्सा अक्सर हिंसक प्रदर्शनों, सड़क जाम और नारेबाजी के रूप में फूटता है। ऐसी संवेदनशील स्थितियों को संभालना और कानून व्यवस्था बनाए रखना पुलिस के लिए वर्तमान में ‘अग्नि परीक्षा’ साबित हो रहा है।
किसी अप्रिय घटना के बाद वन विभाग की टीम के पहुंचने या पंचनामा होने तक ग्रामीणों का सब्र टूट जाता है। इस देरी के कारण पैदा होने वाला असंतोष सीधे तौर पर वहां तैनात पुलिसकर्मियों पर निकलता है। रिपोर्ट के अनुसार, शांति बनाए रखने की कोशिश कर रहे पुलिसकर्मियों को कई बार अभद्र भाषा, धक्का-मुक्की और तीखे विरोध का सामना करना पड़ता है।
पुलिस यहां एक सैंडविच की तरह काम कर रही है, जो एक तरफ वन विभाग की सुस्त प्रक्रिया और दूसरी तरफ जनता के भारी आक्रोश के बीच फंस जाती है, पुलिस को न केवल कानून का पालन कराना पड़ता है, बल्कि एक संवेदनशील मध्यस्थ की भूमिका भी निभानी पड़ती है।
तेंदुए के आतंक ने पुलिस के काम के घंटी और जिम्मेदारियों को कई गुना बढ़ा दिया है। नियमित अपराध नियंत्रण के अलावा, अब पुलिस बल को रात की गश्त (नाइट पेट्रोलिंग), धरना-प्रदर्शनों का प्रबंधन, प्रभावित परिवारों के साथ संवाद और चरिष्ठ अधिकारियों को पल-पल की रिपोर्ट भेजने जैसे कार्यों में पूरी रात जागना पड़ रहा है।
लगातार बढ़ती घटनाओं के कारण पुलिस कर्मियों पर मानसिक दबाव भी बढ़ रहा है। संसाधनों की सीमित उपलब्धता और जनता की बढ़ती उम्मीदों के बीच पुलिस यंत्रणा खुद को कई बार असहाय महसूस करने लगी है।
स्थानीय उद्यमियों और लोगों का मानना है कि पुलिस अपनी भूमिका पूरी ईमानदारी से निभा रही है। मंचर के उद्यमी अजय घुले और लांडेवाडी के श्याम मुंजाल ने पुलिस के संयम की सराहना करते हुए कहा कि पुलिस की मुस्तैदी के कारण ही कई बड़े हादसे टल पाए है।
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हालांकि, जानकारों का यह भी कहना है कि जब तक पुलिस, वन विभाग और नागरिकों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित नहीं होता, तब तक यह तनाव कम नहीं होगा। यदि समय रहते तेंदुए के खतरे का स्थायी समाधान नहीं निकाला गया, तो भविष्य में प्रशासन और जनता के बीच का यह संघर्ष और भी हिसक रूप ले सकता है।






