
प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोशल मीडिया )
Nashik Zilla Parishad Hindi News: नासिक मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की महत्वाकांक्षी योजना ‘जलयुक्त शिवार’ के कामों में नासिक जिला परिषद के जल संरक्षण विभाग द्वारा बड़ी लापरवाही बरतने का मामला सामने आया है।
टेंडर प्रक्रिया में नियमों के उल्लंघन और वित्तीय अनुशासन को ताक पर रखने के कारण जिला परिषद के वित्त विभाग ने सभी फाइलें वापस भेज दी हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि तकनीकी गड़बड़ियों के कारण अब इन कामों के लिए नए सिरे से टेंडर निकालने के अलावा प्रशासन के पास कोई विकल्प नहीं बचा है।
जल संरक्षण विभाग को जलयुक्त शिवार योजना के तहत बांधों के निर्माण के लिए 15।95 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था। जिला जल संरक्षण अधिकारी वैशाली ठाकरे द्वारा शुरू की गई इस टेंडर प्रक्रिया में कई गंभीर चूक पाई गई।
नियम के अनुसार, तकनीकी लिफाफा खुलने के बाद पात्र और अपात्र ठेकेदारों की सूची टेंडर कमेटी से मंजूर करानी है। जल संरक्षण विभाग के कार्यकारी अभियंताओं ने होती है।
इसके बाद ही वित्तीय लिफाफा खोला जा सकता टेंडर कमेटी की मंजूरी लिए बिना ही सीधे वित्तीय लिफाफे खोल दिए और सबसे कम दर वाले ठेकेदारों की फाइले वित्त विभाग को भेज दीं।
कंप्यूटर सिस्टम के रिकॉर्ड से पता चला है कि कई मामलों में पहले ‘फाइनेंशियल लिफाफा’ खोला गया और उसके बाद ‘टेक्निकल लिफाफा’, जो कि पूरी तरह नियमों के विरुद्ध है।
जिला परिषद की टेंडर कमेटी के अध्यक्ष अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी होते हैं और मुख्य लेखा एवं वित्त अधिकारी इसके सदस्य होते हैं। वित्त विभाग ने फाइलें वापस भेजते हुए निम्नलिखित आपत्तियां दर्ज की हैं टेंडर कमेटी की अनुमति के बिना प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया।
यदि टेंडर 1% से कम दर (Below Rate) पर है, तो संबंधित ठेकेदार से ली जाने वाली बैंक गारंटी की जानकारी फाइल में स्पष्ट नहीं है। ऑनलाइन प्रक्रिया होने के कारण अब पुराने रिकॉर्ड को बदला नहीं जा सकता, क्योंकि टेंडर खुलने का समय और क्रम कंप्यूटर सिस्टम पर दर्ज हो चुका है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऑनलाइन टेंडर एक बार खुलने के बाद उसे तकनीकी रूप से पीछे जाकर सुधारा नहीं जा सकता। चूंकि कार्यकारी अभियंता ने टेंडर कमेटी के नोटिस का जवाब भी नहीं दिया है, इसलिए विभाग के भीतर समन्वय की कमी साफ दिख रही है।
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सीईओ के इस मामले में हस्तक्षेप न करने से चर्चाओं का बाजार गर्म है। अब 15।95 करोड़ रुपये के इन विकास कार्यों के लिए री-टेंडर (दोबारा टेंडर) करना ही एकमात्र रास्ता है, जिससे योजना के क्रियान्वयन में और देरी होने की आशंका बढ़ गई है।






