
कुंभमेला वृक्ष कटाई विवाद पर जनसुनवाई में गरमाया माहौल, मंत्री महाजन के 'फैसले' पर विवाद
Nashik News: नाशिक-त्र्यंबकेश्वर में 2027 में होने वाले कुंभ मेले के लिए तपोवन क्षेत्र में 1800 से अधिक पेड़ काटे जाने की आशंका से उठे विवाद ने कुंभमेला मंत्री गिरीश महाजन और पर्यावरण प्रेमियों व नागरिकों के बीच एक गतिरोध का रूप ले लिया है. इस संदर्भ में, जनसुनवाई से पहले मंत्री महाजन के बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है. कुंभमेला मंत्री महाजन ने तपोवन का दौरा करने के बाद कहा था कि साधु-संतों की निवास व्यवस्था के लिए वहाँ 10 वर्ष से अधिक पुराने पेड़ों को काटना पड़ेगा. इस बयान का हवाला देते हुए, सुनवाई से पहले ही महाजन के बयान के कारण कुछ लोगों ने उन्हें सीधे तानाशाह करार दिया.
कुंभ मेले के लिए तपोवन में 48 एकड़ ज़मीन पर साधुग्राम के निर्माण के लिए महानगरपालिका द्वारा 1800 से अधिक पेड़ों पर चिन्हांकन कर उन्हें काटने या प्रत्यारोपण करने के लिए दिए गए नोटिस पर सोमवार को पंचवटी के पंडित पलुस्कर सभागृह में तूफानी ढंग से सुनवाई संपन्न हुई. आगामी कुंभ मेले के नियोजन की जिम्मेदारी कुंभमेला मंत्री गिरीश महाजन के पास है. उन्होंने हाल ही में तपोवन का दौरा करने के बाद दिए गए बयानों पर सुनवाई के दौरान आपत्ति जताई गई. महाजन ने कहा था कि 8 से 10 वर्ष से अधिक पुराने पेड़ों को हटाना होगा, तभी साधु-संतों की व्यवस्था हो सकेगी. जिन पेड़ों को बचाया जा सकता है, उनके लिए प्रत्यारोपण की योजना बनाई गई है.
एक तरफ सुनवाई जारी थी, तो दूसरी तरफ महाजन का यह कहना कि 10 वर्ष से अधिक पुराने पेड़ काटने होंगे, ने कई पर्यावरण प्रेमियों को निराश किया, जिन्होंने आरोप लगाया कि ऐसा लग रहा है जैसे नतीजा पहले ही घोषित किया जा चुका है. भाजपा के राजू देसले ने यह सवाल उठाया कि, सुनवाई से पहले मंत्री महाजन ऐसे बयान कैसे दे सकते हैं? क्या वह खुद को तानाशाह समझते हैं? क्या वह संविधान को नहीं मानते? उन्होंने कहा कि तपोवन में मोदी मैदान, बस स्टेशन आदि के पास पर्याप्त खाली जगह है, जिस पर विचार किया जा सकता है. कुछ लोगों ने महाजन के इस्तीफे की भी मांग की.
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कुछ लोगों ने पेड़ों की प्रजातियों के बारे में महाजन के बयान पर ज़ोर दिया और कहा कि पेड़ों में जातिवाद न लाएं. उन्होंने सुनाया कि लोगों की आपत्तियां सुनकर और उन पर विचार करके निर्णय लेने से पहले ही पेड़ काटने की तैयारी पूरी हो चुकी है. अगर कानून का पालन किया जाता, तो आज की सुनवाई एक कानूनी जनसुनवाई होती लेकिन, आज की सुनवाई एक प्रकार की दिखावा है. इसलिए, यह सुनवाई राजनीतिक है और प्रशासन ने किसी की नहीं सुनी, बल्कि केवल सुनवाई का नाटक करके औपचारिकता पूरी की है.






