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नागपुर. देश में 2020 में आई कोविड महामारी के दौरान अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए शहीद होने वाले कोरोना वॉरियर्स को 50 लाख रुपए बतौर मुआवजा देने की भले ही सरकार की ओर से घोषणा की गई हो लेकिन वास्तव में घोषणा कोरी गप साबित हो रही है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोरोना में अपनी मां खोने वाले पुत्र ने जब मुआवजे के लिए सरकारी दरबार में अर्जी लगाई तो इसमें देरी होने का कारण देते हुए उसे मुआवजा देने से साफ इनकार कर दिया गया. किंतु पुत्र अमेय भैसारे ने निर्धारित समय के भीतर ही अर्जी दिए जाने का हवाला देते हुए अब हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है जिस पर सुनवाई के बाद इसे गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार के सचिव और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने का आदेश दिया. अमेय भैसारे की ओर से अधि. प्रकाश नायडू तथा राज्य सरकार की ओर से अधि. कल्याणी मारपकवार ने पैरवी की.
50 लाख रु. मुआवजे का GR
अधि. सुरभि नायडू ने कहा कि याचिकाकर्ता की मां चिमूर के जिला परिषद स्कूल में शिक्षिका थी. 2020 में पूरे भारत में कोरोना का प्रकोप फैला हुआ था. सरकार ने इससे निपटने के लिए सरकारी कर्मचारियों को सहायता में जुटाया. यहां तक कि डोर-टू-डोर सर्वेक्षण में लगाया गया. आपदा प्रबंधन अधिनियम और भारतीय रोग नियंत्रण अधिनियम का सहारा लेकर कलेक्टर द्वारा पारित आदेश के अनुसार सरकारी कर्मचारियों को 3 शिफ्ट में लगाया गया जिसमें याचिकाकर्ता की मां की भी ड्यूटी थी. कोविड नियंत्रण क्षेत्र में कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य किया गया. महाराष्ट्र सरकार ने 29 मई 2020 के तहत एक नीतिगत निर्णय जारी किया था जिसमें सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा था कि कोई भी सरकारी कर्मचारी जो कोविड-19 के संबंध में अपने काम पर जाते समय कोविड-19 के कारण मर जाता है तो सरकार उसे 50 लाख रुपये बतौर मुआवजा देगी.
निर्धारित समय में अर्जी, फिर भी इनकार
उक्त निर्णय शुरू में 29 मई 2020 से 30 सितंबर 2020 तक लागू था और इसे 1 अक्टूबर 2020 से 31 दिसंबर 2020 तक आगे बढ़ाया गया था. इसी तरह, कोविड-19 के कारण कर्मचारियों की मृत्यु के मामले में बीमा कवर अनुग्रह सहायता के संबंध में 29 मई 2020 का एक और सरकारी अध्यादेश जारी कर बीमा कराने की जानकारी देकर बीमा राशि देने की भी घोषणा की गई. याचिकाकर्ता ने कहा कि उसकी मां ने अप्रैल 2020 से लेकर 11 सितंबर 2020 तक अपनी सेवा देना जारी रखा. उसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ गई और कोविड के कारण 21 सितंबर 2020 को उनकी मृत्यु हो गई. याचिकाकर्ता ने तुरंत ही 8 जनवरी 2021 को पत्र देकर 50 लाख रुपए मुआवजा की मांग की लेकिन प्रतिवादियों की ओर से ध्यान नहीं दिया गया. निर्धारित समय के भीतर अर्जी के बावजूद मुआवजा देने से इनकार किया गया. सुनवाई के बाद अदालत ने उक्त आदेश जारी किया.