बैल पोला पर्व (सौ.सोशल मीडिया)
महाराष्ट्र में आज बैल पोला पर्व मनाया जा रहा हैं जो राज्य के हर हिस्से में बड़े ही धूमधाम से किसान वर्ग द्वारा मनाया जा रहा है। इस दिन किसान बैलों को बड़े ही आकर्षक तरीके से सजाकर पूजा करते है। इस पर्व को लेकर राज्य में अलग ही छाप देखने के लिए मिलती है। बैल पोला पर्व भारत के लोक परंपराओं से जुड़ा त्योहार हैं जिसे देश के हर हिस्से में अलग-अलग नामों से जानते है। महाराष्ट्र के अलावा यह त्योहार मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और दक्षिण भारत में मनाया जाता है।
महाराष्ट्र में बैल पोला तो वहीं इसे कई प्रकार के नामों से जाना जाता है। इसमें पोला पर्व, पोला अमावस्या, उत्तरभारत में भाद्रपद अमावस्या का नाम दिया गया है। महाराष्ट्र में इस दिन किसान अपने मवेशियों की पूजा करते हैं और खेती में सहयोग करने पर धन्यवाद देते है। बता दें कि, पोला का त्योहार भाद्रपद (महाराष्ट्र में सावन सोमवार) की अमावस्या को मनाने की परंपरा होती है। इसे अन्य नामों में पिठौरी अमावस्या, कुशग्रहणी, कुशोत्पाटिनी के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार राज्य में दो दिनों तक मनाने की परंपरा होती हैं इसमें बैल पोला यानि मीठा पोला और तान्हा पोला। बैल पोला वाले दिन बैलों की पूजा का महत्व होता हैं तो वहीं पर तान्हा पोला में बच्चे मिट्टी के बैल लेकर घर-घर जाते हैं लोग उनकी पूजा करके कुछ ना कुछ न्यौछावर करते है।
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प्रचलित कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस ने कई प्रयास किए, लेकिन वो इस काम में सफल नहीं हो पाया। तब कंस ने पोलासुर नाम का एक राक्षस श्रीकृष्ण को मारने के लिए भेजा। पोलासुर बैल का रूप लेकर पशुओं के साथ शामिल हो गया। भगवान श्रीकृष्ण ने पशुओं के झुंड में भी उसे पहचान लिया और उसका वध कर दिया। तभी से बैल पोला का पर्व मनाया जा रहा है। इसी प्रकार ही भगवान शिव के वाहन नंदी बैल का संबंध भी इस दिन से है। इस वजह से बैल पोला का महत्व आज बढ़ जाता है।
आपको बताते चलें कि, आज बैल पोला के दिन सुबह के समय बैलों और गायों को बांधा नहीं जाता हैं उन्हें खुला रखते हैं। आज के दिन उन्हें अच्छी तरह पूरे शहर में हल्दी,उबटन, सरसो का तेल लगाकर मालिश की जाती है। इसके बाद पानी से नहलाया जाता हैं औऱ सजाया भी जाता है। इस दिन सजाने के साथ ही गले में खूबसूरत घंटी नुमा माला भी भी पहनाई जाती है। उन्हें धातु के गहनें औऱ कपड़े पहनाएं जाते है। इस दिन पूजा के बाद खास पकवान ठेठरी और खुरमा खिलाया जाता है।