महाबोधि विहार मुक्ति के लिए सुको पहुंची पीरिपा (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Nagpur News: तथागत गौतम बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति की पवित्र भूमि महाबोधि महाविहार बोधगया क्षेत्र की पूर्ण स्वायत्तता और बौद्ध समुदाय के नियंत्रण में इसके प्रबंधन के लिए संवैधानिक स्तर पर सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है। याचिका महाराष्ट्र लघु उद्योग विकास निगम के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष (राज्य मंत्री स्तर) जयदीप कवाडे ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में दायर की है।
इस लड़ाई ने न केवल देश भर में बल्कि दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों का ध्यान आकर्षित किया है। यह याचिका एडवोकेट विजय पट्टेबहादुर के माध्यम से प्रस्तुत की गई है। इस याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होनी थी। हालांकि, कुछ कानूनी पेचीदगियों के कारण सुनवाई स्थगित कर दी गई है, किंतु सर्वोच्च न्यायालय जल्द ही इस संबंध में अगली सुनवाई की तारीख तय करेगा।
याचिका में केंद्र सरकार के 1949 में बने ‘बोधगया मंदिर अधिनियम’ को पूरी तरह असंवैधानिक घोषित करते हुए उसे तत्काल निरस्त करने की मांग की है। साथ ही महाबोधि विहार की संपत्ति, प्रबंधन और नियंत्रण पूरी तरह बौद्ध समुदाय को सौंपने की मांग भी की। याचिका में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि मठ में अन्य अनुष्ठान, बाहरी धार्मिक हस्तक्षेप और पूजा-अर्चना जैसे बौद्ध-विरोधी सिद्धांतों पर पूरी तरह रोक लगाई जाए।
महाबोधि विहार की स्वायत्तता के लिए पहले भी कुछ याचिकाएं दायर की गई थीं। हालांकि, उन्हें न्यायालय से अपेक्षित आदेश प्राप्त नहीं हुआ है। विशेष रूप से पूर्व राज्य मंत्री सुलेखा कुंभारे की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने नकारात्मक फैसला दिया था। चूंकि अब दायर याचिका अधिक सुसंगत कानूनी आधार, संविधान के मौलिक अधिकारों की रूपरेखा और बौद्धों की धार्मिक गरिमा के नैतिक दावे पर आधारित है, इसलिए यह याचिका एक गंभीर और ऐतिहासिक मुद्दे के रूप में सामने आ रही है।
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जयदीप कवाडे ने कहा कि दायर याचिका केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं है, बल्कि बौद्ध धर्म के स्वाभिमान, ऐतिहासिक धरोहर और धार्मिक अधिकारों की रक्षा की लड़ाई है। याचिका में दृढ़ता से कहा गया है कि जिस पवित्र स्थान पर महान तथागत गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था, उसके प्रबंधन में बौद्धों की आवाज़ का न होना एक धार्मिक और संवैधानिक विडंबना है। इस याचिका ने देश भर में और विशेष रूप से नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, जापान, कोरिया और तिब्बत में बौद्ध अनुयायियों के बीच भी जिज्ञासा जगाई है। कई अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संगठनों ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देना शुरू कर दिया है, और भारत सरकार और न्यायपालिका का अगला निर्णय बौद्ध जगत में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होगा।