
शिक्षा मंडल पुणे (सोर्स: सोशल मीडिया)
नागपुर: नागपुर विभाग में शिक्षक और कर्मचारियों की भर्ती का घोटाला उजागर होने के बाद एक-एक परत खुलने लगी है। नागपुर जिले में 580 शिक्षक भर्ती घोटाले ने हर जगह हलचल मचा दी है। जिले के निजी प्राथमिक स्कूलों में एक या दो नहीं बल्कि 580 शिक्षकों की फर्जी नियुक्ति की गई है। यह भी सामने आया है कि इन फर्जी नियुक्तियों और वेतनों के कारण सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए की ठगी की गई है और खुद शिक्षा विभाग ने अपने एक आदेश में यह बात स्वीकार की है।
इस मामले में शिक्षा विभाग ने शिक्षा आयुक्त को घोटाले में शामिल सभी लोगों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने का निर्देश दिया है। फर्जी शालार्थ आईडी प्रकरण सामने आने के बाद नागपुर पुलिस ने शिक्षा उपसंचालक उल्हास नरड, अधीक्षक निलेश मेश्राम, शिक्षा उपनिरीक्षक संजय सुधाकर, लिपिक सूरज नाइक और पराग पुटके को गिरफ्तार किया है।
दूसरी ओर राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पूरे मामले को गंभीरता से लिया है और पुलिस को इस घोटाले की गहन जांच करने का आदेश दिया है। इस बीच विभाग ने जांच शुरू कर दी है। माध्यमिक, प्राथमिक शिक्षाधिकारी सहित वेतन पथक अधिकारी और कर्मचारियों को दस्तावेजों के साथ पुणे मुख्यालय तलब किया गया है।
भंडारा जिले में एक बोगस शिक्षक को शालार्थ आईडी दिये जाने संबंधी मामले के बाद शिक्षा उपसंचालक उल्हास नरड, माध्यमिक विभाग के अधीक्षक नीलेश मेश्राम सहित 5 कर्मचारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
इस मामले में शिक्षा संचालक स्तर पर जांच शुरू की गई है। इसी जांच के सिलसिले में सभी अधिकारियों को पुणे तलब किया गया है। अधिकारी दस्तावेजों के साथ पुणे पहुंच गये हैं लेकिन वे इस मामले से कोई भी संबंध होने से इनकार कर रहे हैं।
एक अधिकारी ने बताया कि रूटीन जांच-पड़ताल के लिए पुणे आये हैं। इस बीच घोटाला सामने आने के बाद कई शिक्षकों की शालार्थ आईडी ब्लॉक कर दी गई है। इस वजह से शिक्षकों के वेतन भी नहीं निकाले जा रहे हैं।
दरअसल, 2012 में पड़ताल के बाद शिक्षक समायोजन की प्रक्रिया पूरी होने तक शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की नियुक्ति पर रोक लगाई गई थी। शिक्षाधिकारियों को आदेश दिये गये थे कि किसी भी नियुक्ति को मान्यता न दी जाए। इस आदेश के बाद भी मंत्रालय स्तर पर मान्यता लाई गई। यही वजह है कि इस समूचे मामले में उच्च पदस्थ अधिकारियों की भी साठगांठ से इनकार नहीं किया जा सकता।
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2012 में स्कूलों में छात्रों की पड़ताल की गई थी। इसमें पाया गया था कि छात्रों की संख्या कम होने से कई शिक्षक अतिरिक्त हो गये हैं। 2 मई 2012 को शिक्षा विभाग ने आदेश जारी किया। इसमें स्पष्ट किया गया कि जब तक शिक्षक-कर्मचारियों के समायोजन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती नई नियुक्ति न की जाए। यदि संस्था स्तर पर नियुक्ति की जाती है तो उसे शिक्षाधिकारियों द्वारा मान्यता न दी जाए। इसके बाद भी नियुक्तियों का सिलसिला जारी रहा।
9 अप्रैल 2015 को शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि विभाग में 580 शिक्षक व कर्मचारियों की नियुक्तियां प्रथम दृष्टया बोगस पाई गई हैं। यानी शिक्षा विभाग ने ही खुद नियुक्तियों को बोगस करार दिया है।






