प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: सोशल मीडिया)
Nagpur Job Scam News: मंत्रालय में लिपिक सहित विविध पदों पर नौकरी दिलाने का झांसा देकर ठगी करने वाले गिरोह के दूसरे आरोपी को नागपुर पुलिस की आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) ने गिरफ्तार कर लिया है। पकड़ा गया आरोपी वाठोड़ा निवासी विजय पाटणकर बताया गया। खबर मिली है कि आरोपी अब तक 200 से ज्यादा उम्मीदवारों को करोड़ों रुपये का चूना लगा चुके हैं। इसके पहले पुलिस मामले के मुख्य आरोपी म्हालगीनगर निवासी लॉरेंस हैनरी (45) को गिरफ्तार कर चुकी है।
पुलिस ने लॉरेंस की पुलिस हिरासत ली। उससे पूछताछ में विजय का नाम सामने आया। कई दिनों से पुलिस उसकी तलाश में जुटी थी। सोमवार को वह ईओडब्लू की टीम के हाथ लग गया।
इस मामले में शिल्पा उदापुरे (40), वसंतकुमार उर्फ वसंतराव उदापुरे (60), नितिन साठे (41), सचिन डोलस (45) और बाबर (55) नामक आरोपी फरार बताए जा रहे हैं। विजय और लारेंस मिलकर यह रैकेट चला रहे थे जिसमें शिल्पा की भी अहम भूमिका थी।
यह मामला तब प्रकाश में आया जब सुगतनगर निवासी राहुल तायड़े ने पुलिस से शिकायत की। राहुल ने अपनी शिकायत में बताया कि आरोपियों ने वर्ष 2019 में मुंबई स्थित मंत्रालय में कनिष्ठ लिपिक के पद पर नौकरी दिलाने का झांसा दिया। यह काम करवाने के लिए उससे 9.55 लाख रुपये लिए गए।
आरोपी बाकायदा मेडिकल टेस्ट करवाने के लिए उसे मुंबई के जेजे अस्पताल में ले गए। उसका मंत्रालय के ही एक केबिन में इंटरव्यू लिया गया। आरोपियों ने राहुल को मंत्रालय का फर्जी पहचानपत्र भी दे दिया था जिससे वह बिना रोक-टोक के भीतर आवाजाही कर सके।
पुलिस का दावा है कि यह गिरोह राज्य भर में अनेक उम्मीदवारों को शिकार बना चुका है। शुरुआत में पुलिस का अनुमान था कि फ्रॉड 1.50 करोड़ रुपये का है लेकिन मामला दर्ज होने के बाद लगातार पीड़ित सामने आ रहे हैं और संख्या 200 के पार होने का अनुमान है।
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नागपुर में राहुल के अलावा 4 पीड़ितों ने शिकायत की थी। हुड़केश्वर पुलिस थाने के अलावा चंद्रपुर और वर्धा में भी आरोपियों के खिलाफ धोखाधड़ी के मामले दर्ज हुए हैं। आरोपी एक तरह से मंत्रालय में ही अपना रैकेट चला रहे थे। उम्मीदवार को प्रवेशपत्र दिलाकर बाकायदा एक केबिन में साक्षातकार लिया जाता था। वहां आरोपी के नाम की प्लेट भी लगी होती थी।
इससे मंत्रालय के भी कुछ लोगों के गिरोह से संबंध होने का संदेह है। पहले आसानी से मंत्रालय में प्रवेश मिल जाता था लेकिन इसके लिए किसी न किसी अधिकारी की अनुमति आवश्यक होती थी। मंत्रालय में आरोपियों को केबिन मिल जाना बड़े आश्चर्य की बात है।