
हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
Nagpur News: हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया है जिसमें भूमि अधिग्रहण के मुआवजे में वृद्धि की मांग करने वाले एक आवेदन में हुई 10 साल से अधिक की देरी को माफ करने के फैसले को चुनौती दी गई थी।
न्यायाधीश निवेदिता मेहता ने फैसले में जिला न्यायाधीश और मध्यस्थ (आर्बिट्रेटर) के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें नेशनल हाईवेज एक्ट, 1956 की धारा 3(G)(5)35 के तहत मुआवजा बढ़ाने के लिए दायर आवेदन में हुई देरी को माफ कर दिया गया था।
यह आवेदन मूल अवार्ड के पारित होने के बाद 10 साल, 8 महीने और 20 दिन की अत्यधिक देरी से दायर किया गया था। एनएचएआई ने तर्क दिया कि उर्मिला ठाकुर का नाम न तो मूल अवार्ड में और न ही संशोधित अवार्ड में था। उनका अधिग्रहित भूमि पर कोई स्वामित्व नहीं था।
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अपीलकर्ताओं ने बताया कि ठाकुर ने 9 फरवरी 2016 को एक विक्रय विलेख (sale deed) पर भरोसा किया, जबकि अधिग्रहण के लिए धारा 3-A अधिसूचना 15 मार्च 2005 को जारी की गई थी। एनएचएआई के अनुसार, अधिसूचना के बाद किए गए सभी लेन-देन शून्य होते हैं, इसलिए उन्हें मुआवजा वृद्धि की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है।
ठाकुर की पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि उन्हें अधिग्रहण और अवार्ड पारित होने के बारे में 7 नवंबर 2019 को ही पता चला। उन्होंने बताया कि उन्हें या उनके पूर्व मालिकों को कभी भी अधिग्रहण की सूचना या अवार्ड की सूचना नहीं दी गई थी। ठाकुर ने 8 नवंबर 2019 को मुआवजे का भुगतान विरोध के साथ स्वीकार किया और 25 नवंबर 2019 को वृद्धि के लिए आवेदन दायर कर दिया।
कोर्ट ने पाया कि एनएचएआई यह साबित करने में विफल रहा कि ठाकुर या उनके पूर्व मालिकों को पहले कोई नोटिस दिया गया था। हाई कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि भूमि अधिग्रहण के मामलों में उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए, खासकर यह देखते हुए कि भारत में ग्रामीण, जो अक्सर अनपढ़ होते हैं, कानून की पेचीदगियों से परिचित नहीं होते हैं।






