हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
Nagpur News: निचली अदालत ने वेदानंद भालदार को अपहरण, दुष्कर्म और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत लगे आरोपों से बरी कर दिया था। इसे चुनौती देते हुए राज्य सरकार की ओर से हाई कोर्ट में अपील दायर की गई। इस पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने निचली अदलात के आदेश को बरकरार रखते हुए राज्य सरकार की अपील ठुकरा दी।
वेदानंद की ओर से अधिवक्ता राजेन्द्र डागा ने पैरवी की। वेदानंद पर आईपीसी की धारा 363-ए, 366 और 376 के साथ-साथ अत्याचार अधिनियम की धारा 3(1)(xi) और 3(2)(v) के तहत मुकदमा चलाया गया था। अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे वकील एच.एन. प्रभु ने दलील दी थी कि निचली अदालत ने आरोपी को बरी करने में गलती की जबकि आरोप विशेष रूप से चिखलदरा और खरपी में विभिन्न तिथियों पर दुष्कर्म साबित हो चुके थे। आरोपी के वकील आर.एम. डागा ने इन दलीलों का कड़ा विरोध किया और कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा।
हाई कोर्ट ने निचली अदालत के निष्कर्षों को कानूनी रूप से सही पाया और कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा लिया गया दृष्टिकोण रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों के आधार पर एक संभावित दृष्टिकोण था। आरोपी की रिहाई को बरकरार रखने के लिए ट्रायल कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला था कि पीड़िता की जाति साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई दस्तावेज नहीं था।
जो जाति प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया गया था वह अभियोक्त्री से संबंधित नहीं पाया गया। 2008 में पीड़िता की आयु 14 वर्ष बताई गई थी। हालांकि उसकी जन्मतिथि के संबंध में विरोधाभासी बयान सामने आए। पीड़िता ने अपनी जन्मतिथि 22 जून, 1995 बताई जबकि उसकी मां ने 22 जून 1994 बताई है।
चिकित्सा अधिकारी ने भी स्वीकार किया कि ऑसिफिकेशन टेस्ट भी सटीक आयु निर्धारित नहीं कर सकता और इसमें दोनों तरफ 2-3 साल का अंतर संभव है। पीड़िता की चिकित्सा जांच रिपोर्ट में डॉक्टर ने दुष्कर्म की पुष्टि पर कोई सटीक राय नहीं दी। जांच में पाया गया कि हाइमन पुराना फटा हुआ था और पीड़िता को कोई बाहरी या आंतरिक चोट नहीं थी।
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रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट में भेजे गए किसी भी सामान पर वीर्य का पता नहीं चला जिससे अभियोजन पक्ष के मामले को समर्थन नहीं मिला। स्पॉट पंचनामा का गवाह पीड़िता का मामा और कपड़ों/मोटरसाइकिल जब्ती का गवाह और अन्य गवाह मुकर गए और अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन नहीं किया।