निशांत अग्रवाल पर 2 अप्रैल को अंतिम सुनवाई। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नागपुर: ब्रह्मोस मिसाइल की गोपनीय जानकारी पाकिस्तान के आईएसआई एजेंट को देने के मामले में लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद हाल ही में जिला सत्र न्यायालय ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिक रहे निशांत अग्रवाल को उम्र कैद की सजा सुनाई। जिला सत्र न्यायालय के इसी आदेश को चुनौती देते हुए अब निशांत ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
याचिका पर मंगलवार को सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने मामले का अंतिम निपटारा करने के उद्देश्य से 2 अप्रैल को याचिका सुनवाई के लिए रखने के आदेश जारी किए। जिला सत्र न्यायालय ने आईटी एक्ट की धारा 66-F में 14 वर्ष की सजा सुनाई थी, जिसमें से साढ़े 4 साल तक पहले ही जेल में रहा है, जिससे 14 वर्ष की उम्र कैद की सजा में से बचे 10 वर्ष जेल में काटने हैं।
गत सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने जहां जांच एजेंसियों से जवाब दायर करने को कहा था, वहीं जिला सत्र न्यायालय से इस मामले का पूरा रिकॉर्ड भी मांगा, जिसके बाद अब इस मामले में हाई कोर्ट में सुनवाई होने जा रही है। पूरे मामले को लेकर एटीएस की ओर से चार्जशीट में बताया गया कि निशांत के लैपटॉप और हार्डडिस्क का गहन जांच की गई। लैपटॉप में खुफिया और प्रतिबंधित रिकॉर्ड पाया गया था। इस तरह की 19 फाइल्स निशांत के लैपटॉप में थीं।
आश्चर्यजनक यह है कि उसने लैपटॉप में एक सॉफ्टवेयर डाल रखा था। सॉफ्टवेयर के जरिए लैपटॉप से खुफिया और गंभीर विस्तृत जानकारी विदेशों में बैठे आतंकी संगठनों को मिल जाती थी। प्राथमिक स्तर पर पाया गया कि 4,47,734 कैच फाइल्स इस लैपटॉप और हार्डडिस्क से लीक हुई हैं। अभियोजन पक्ष के अनुसार याचिकाकर्ता ने ही खुफिया और प्रतिबंधित रिकॉर्ड लीक किया है, जिसके अनुसार उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया।
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अभियोजन पक्ष का यह भी मानना था कि देश विघातक गतिविधियों में फंसाने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ हनी ट्रैप लगाकर उसे जाल में फंसाया गया। कुरुक्षेत्र एनआईटी से 2013 की बैच के टॉपर निशांत को डीआरडीओ में वैज्ञानिक के पद पर नियुक्ति मिली थी।
अगस्त 2012 को प्लेसमेंट के बाद उसे नागपुर यूनिट में भेजा गया, जहां ब्रह्मोस यूनिट में कार्यरत था। निशांत के वकील के अनुसार इस मामले में आईटी एक्ट के अनुसार अधिकतम सजा 3 वर्ष की है। ऐसे में याचिकाकर्ता ने इससे अधिक समय जेल में काट चुका है। सरकारी पक्ष के अनुसार यह देश की सुरक्षा का प्रश्न है, जिसे सहजता से नहीं लिया जा सकता है।