
हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
Nagpur News: अपने बच्चे को पाने के लिए दम्पति द्वारा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाए जाने से अंतत: सुनवाई के दौरान जैविक मां की ही सहमति से याचिकाकर्ता परिवार को 13 माह का बच्चा वापस मिल गया। हाई कोर्ट ने आपराधिक रिट याचिका पर दोनों पक्षों की दलीलों के बाद जैविक मां की बच्चे को याचिकाकर्ताओं को देने की सहमति और बाल कल्याण समिति के आदेश के बीच के टकराव पर विचार किया।
याचिकाकर्ता दम्पति ने 28 मई, 2024 को एक ‘गोद लेने का डीड-सह-अनापत्ति प्रमाणपत्र’ निष्पादित किया था। इसके तहत उन्होंने जैविक मां द्वारा जन्म दिए गए बच्चे को गोद लिया था। गोद लेते समय बच्चे की उम्र 13 महीने थी। याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता पत्नी के गर्भधारण न कर पाने के कारण वे बच्चे को गोद लेने के लिए बेताब थे।
इस गोद लेने की प्रक्रिया से पहले 5 अप्रैल, 2023 को आईपीसी 1960 की धारा 363, 370, 506 और 34 के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई थी। इस मामले में आयशा खान और रेखा पुजारी मुख्य आरोपी थीं जिन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और चार्जशीट दाखिल हो चुकी है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वे रेखा पुजारी के माध्यम से बच्चे को सौंपे जाने के दौरान हुईं बातों से अनजान थे।
उन्होंने उचित सावधानी बरते बिना बच्चे को गोद लिया था। जांच अधिकारी ने बच्चे को श्रद्धानंद अनाथालय को सौंप दिया था। यह कार्रवाई किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत गठित बाल कल्याण समिति द्वारा 17 अप्रैल, 2023 को पारित आदेश के अनुसार की गई थी।
सुनवाई के दौरान अदालत के सामने याचिकाकर्ता दम्पति और जैविक मां दोनों उपस्थित थे। जैविक मां ने स्वेच्छा से बच्चे को याचिकाकर्ताओं को गोद देने की सहमति व्यक्त की। उन्होंने अदालत को बताया कि उनके पति का देहांत काफी पहले हो चुका था। बच्चे का जन्म उनके और उनके दोस्त संतोष के बीच के रिश्ते से हुआ था और वे अब अलग हो चुके हैं।
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जैविक मां एक मजदूर के रूप में काम करती है और बच्चे का भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं हैं। इसके विपरीत याचिकाकर्ता दम्पति की अनुमानित वार्षिक आय लगभग 6,00,000 रुपये है और उन पर बच्चे की देखभाल न करने का कोई आरोप नहीं है बल्कि वे बच्चे से स्नेहपूर्ण व्यवहार करते थे।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने लीलेन्द्र देजू शेट्टी बनाम महाराष्ट्र राज्य में संलग्नित बेंच द्वारा दिए गए एक निर्णय का हवाला दिया। उस निर्णय में यह कहा गया था कि यदि बच्चे ‘अनाथ’ या ‘परित्यक्त’ नहीं हैं और वे अधिनियम 2015 की धारा 2(14) के तहत देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की श्रेणी में नहीं आते हैं तो सीडब्ल्यूसी द्वारा उनकी कस्टडी अनाथालय को सौंपने का आदेश अवैध है। हाई कोर्ट ने पाया कि वर्तमान मामले में जैविक मां स्वयं न्यायालय के समक्ष उपस्थित है और बच्चे को गोद देने की इच्छा व्यक्त कर रही है।






