नागपुर में नहीं हो रहा रेन वाटर हार्वेस्टिंग' नियमों का पालन ( pic credit - social media)
नागपुर: लगातार नीचे जाते भूजल स्तर को रोकने के लिए सरकार ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग यानी वर्षा जल संचयन के लिए नीति बनाई है। वर्ष 2009 के मॉडल बिल्डिंग बायलॉज के अनुसार 1,000 वर्गमीटर की प्रॉपर्टी पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य था। लेकिन वर्ष 2016 में इस नियम में संशोधन करते हुए इसे 100 वर्गमीटर कर दिया। मतलब 1,000 वर्गफीट और उससे अधिक के प्लॉट पर बने मकानों, फ्लैट स्कीम, सरकारी, अर्धसरकारी इमारतों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य कर दिया।
प्रशासन के पास नहीं है कोई आकड़ा
नागपुर के शहरी और ग्रामीण भागों के सरकारी इमारतों में तो हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए गए हैं। लेकिन निजी मकानों, इमारतों, फ्लैट स्कीम्स में इस नियम का पालन हो रहा है या नहीं इसकी जांच करने व एक्शन के लिए नगर प्रशासन के पास कोई यंत्रणा ही नहीं है। न ही कोई जन-जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। हालांकि मनपा प्रशासन ने नक्शा पास करने के लिए इसे अनिवार्य कर दिया है। इतना ही नहीं वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने पर संपत्ति कर में भी छूट मिलती है। सिटी में 7 से 8 लाख के बीच इमारतें हैं जिनमें कम से कम आधी तो 1,000 वर्गफीट से अधिक के प्लॉट पर हैं। लेकिन कितने मकानों में हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा है इसका आंकड़ा प्रशासन के पास नहीं है।
मात्र 25,000 रुपये का खर्च
जानकारों के अनुसार, 100 वर्गमीटर में बने मकानों पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बिठाने के लिए मुश्किल से 25-30 हजार रुपयों का खर्च आता है। वहीं 300 वर्गमीटर के लिए यह खर्च 75 से 90 हजार रुपये का आता है। बीते वित्तीय वर्ष 2024-25 में नगर नियोजन विभाग ने शहर के 165 निर्माण कार्यों को हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने की शर्त पर मंजूरी दी थी। सिटी में अब हर बस्ती व कॉलोनियों में 1,600 से 2,400 वर्गफीट के प्लॉट्स पर बने मकानों को तोड़कर छोटे-छोटे 8 से 16 फ्लैट्स वाली स्कीम तेजी से तैयार की जा रही हैं। आश्चर्य की बात यह है कि बिल्डर इसमें वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं बना रहे हैं। जो भी नई निजी इमारत बन रही है उसके लिए सोलर पैनल, वाटर हार्वेस्टिंग, कचरा व्यवस्थापन अनिवार्य है। इसका पालन नहीं हो रहा और नगर प्रशासन के कर्णधारों के पास यह सब जांच करने के लिए समय ही नहीं है।
इसके उलट अनेक सजग जिम्मेदार नागरिकों ने अपने पुराने घरों में भी बारिश का पानी बर्बाद होने से बचाने के लिए सिस्टम बनाया है। कुछ ने तो अपने घर के कुएं में ही छतों का पानी छोड़ने के लिए पाइप लगा रखे हैं। जिससे वाटर लेवल हमेशा बना रहे। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है। आंकड़ें देखें तो सिटी में 2,000 के करीब इमारतों में यह सिस्टम लगा हुआ है, जबकि मकानों व इमारतों की संख्या लाखों में हैं। इसमें भी सरकारी कार्यालयों की इमारतों का भी समावेश है।
लाखों गैलन पानी होता है बर्बाद
हर वर्ष बारिश के दिनों में वर्षा का लाखों गैलन पानी वाटर ड्रेनेज से होकर नदी-नालों के माध्यम से बहकर बर्बाद हो जाता है। सीमेंटीकरण के कारण पानी धरती में समाविष्ट नहीं हो पाता। यह भी भूजल स्तर के नीचे जाने का कारण है। सिटी से सटे अनेक विस्तारित भागों में गर्मी में जलसंकट की स्थिति बन जाती है। सिटी में बन रहीं नई सरकारी इमारतों में जरूर वर्षा जल संचय के लिए सिस्टम लगाए गए हैं। नये पुलिस आयुक्तालय, जिला परिषद की नई प्रशासकीय इमारत, हाई कोर्ट की इमारत, मनपा की नई प्रशासकीय इमारत, विभागीय आयुक्त परिसर में बनी 2 नई इमारतों सहित कुछ अन्य कार्यालयों की इमारतों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए गए हैं। लेकिन जो इमारतें काफी पुरानी हैं उनमें यह व्यवस्था नहीं की गई है जो की जा सकती है।
कुंभेजकर ने जिले के लिए बनाया था इस्टीमेट
बताते चलें कि जिला परिषद सीईओ योगेश कुंभेजकर ने वर्ष 2022 में जिले की 1,068 शासकीय इमारतों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का नियोजन किया था। उनके कार्यकाल में 15वें वित्त आयोग की निधि से अदासा गणेश मंदिर में आदर्श रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रोजेक्ट लगाया गया था। उसी तर्ज पर उन्होंने जिलेभर में 1,068 इमारतों में सिस्टम लगाने का प्रस्ताव तैयार किया था जिसे मनरेगा निधि के तहत किया जाना था। मनरेगा के तहत ग्रामीण भागों में कुछ काम शुरू भी कर दिए गए थे। सभी स्कूलों, आंगनवाड़ी, ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, पीएचसी इमारतें, सब-सेंटर में यह लगाया जाना था। जानकारी के अनुसार, कुछ कार्य हुए भी हैं लेकिन शहर सहित जिले की निजी सम्पत्तियों पर इसे अमल में लाने के लिए अब तक इच्छाशक्ति अधिकारियों द्वारा नहीं दिखाई गई है।