राज ठाकरे-देवेंद्र फडणवीस-शरद पवार (सौजन्य-एएनआई)
मुंबई: राज्य के स्कूलों में पहली कक्षा से तीसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाए जाने के निर्णय को विरोध तेज होता जा रहा है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने सरकार के निर्णय के खिलाफ बगावत का शंखनाद किया और अब उन्हें पूरे विपक्षी गठबंधन ‘महाविकास आघाड़ी’ (MVA) का तो समर्थन मिल गया है। इसके साथ-साथ सरकारी निर्णय पर सत्तारूढ़ महायुति में भी कन्फ्यूजन देखने को मिल रहा है।
सत्तारूढ़ महायुति में शामिल उप मुख्यमंत्री अजित पवार और उनकी पार्टी एनसीपी सरकार के निर्णय का खुलकर विरोध कर रही है। जबकि महायुति में शामिल उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने रहस्यमयी चुप्पी साध ली है। पांचवी कक्षा से पहले ही तीन भाषा (हिंदी, मराठी और अंग्रेजी) पढ़ाई जाती है। तो फिर पहली कक्षा से हिंदी या कोई और भाषा पढ़ाने की जल्दबाजी क्यों ऐसा सवाल करते हुए राज ठाकरे ने सरकार के निर्णय के खिलाफ 5 जुलाई को मोर्चा निकालने की घोषणा की है।
पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी शिवसेना यूबीटी भी मोर्चे में शामिल होगी। तो वहीं कांग्रेस और एनसीपी-एसपी शरद पवार ने भी मनसे के मोर्चे को समर्थन दे दिया है। मनसे ने बाला नंदगांवकर, नितिन सरदेसाई और संदीप देशपांडे को तो वहीं यूबीटी में संजय राउत और वरुण सरदेसाई को मोर्चे को सफल बनाने की जिम्मेदारी दी गई है। राजनीतिक नेताओं, कलाकारों, आम नागरिकों और लेखकों से इस मार्च में शामिल होने की अपील की जा रही है।
यूबीटी के सांसद संजय राउत ने शनिवार को सोशल नेटवर्किंग साइट एक्स पर एक संदेश साझा करके हिंदी भाषी नीति का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने ये भी बताया है कि 29 जून को उनकी पार्टी आजाद मैदान पर सरकारी निर्णय को होली जलाएगी तो वहीं 5 जुलाई के प्रस्तावित रैली की रूपरेखा तय करने के लिए शिवसेना भवन में यूबीटी के नेताओं एवं पूर्व नगरसेवकों एवं प्रमुख नेताओं की एक बैठक आयोजित की गई है।
कांग्रेस महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा फडणवीस और बावनकुले को बताना चाहिए कि गुजरात में पहली कक्षा से हिंदी नहीं है तो महाराष्ट्र में पहली कक्षा से हिंदी क्यों? दोनों राज्यों के लिए अलग-अलग नीति क्यों? यह 8वीं सूची की सभी भाषाओं को खत्म करके केवल हिंदी को एकमात्र भाषा बनाए रखने की यह संघ और भाजपा की कुटिल योजना तो नहीं है? हम मराठी का गला नहीं घोंटने देंगे।
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इस मामले में डीसीएम अजित पवार भी बीजेपी और सरकार की भूमिका से सहमत नहीं है। उन्होंने पहले ही कह दिया है कि बच्चों को कक्षा 5 तक अपनी मातृभाषा में ही पढ़ना चाहिए। उन्हें किसी अन्य भाषा में नहीं पढ़ना चाहिए। मुझे किसी भी भाषा से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन छोटी उम्र में बच्चों पर भाषाओं का बोझ डालना सही नहीं है।