मुंबई महानगरपालिका चुनाव में कांग्रेस की 'अलग' राह (सौजन्यः सोशल मीडिया)
मुंबई: मुंबई महानगरपालिका चुनाव के लिए कांग्रेस अपनी संभावनाएं तलाशने में जुट गई है। मुंबई महानगरपालिका चुनाव को लेकर कांग्रेस ने ऐसा दांव चलाया है जिससे महाराष्ट्र की सियासत में खलबली मच गई है। अब तक महाविकास अघाड़ी के वफादार साथी के रूप में खड़ी कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह अब अपनी शर्तों पर लड़ेंगी। दरअसल, राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की संभावित नजदीकियों ने कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। कांग्रेस नेता मानते हैं कि अगर ये दोनों नेता साथ आ गए तो मराठी अस्मिता का कार्ड जोर से खेला जाएगा और गठबंधन में रहकर कांग्रेस को इसका सीधा नुकसान उठाना पड़ेगा।
बता दें कि कांग्रेस के भीतर ये चर्चा तेज है कि महाविकास आघाड़ी में रहकर चुनाव लड़ना मतलब अपनी सीटें गंवाना। मुंबई कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि हमारे पास उत्तर भारतीय, दलित और मुस्लिम वोट बैंक है। लेकिन गठबंधन में रहते हुए सीटों की जबरन बंदरबांट करनी पड़ेगी और ये वोट इधर-उधर हो जाएंगे। एक पदाधिकारी ने तो खुले शब्दों में कहा “अगर गठबंधन में रहे तो जमीन खिसकेगी, स्वावलंबी होकर लड़ेंगे तो अपनी ताकत दिखा पाएंगे।”
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अगर हाथ मिला लेते हैं तो मराठी अस्मिता और हिंदुत्व का एक संयुक्त चेहरा उभरेगा। कांग्रेस नेताओं को डर है कि राज ठाकरे से नाराज मतदाता अगर उद्धव के साथ लौट आया तो पूरा गठबंधन कमजोर हो जाएगा। कांग्रेस यही खाली जगह भरने का सपना देख रही है। कांग्रेस की भावनाए है कि अगर हम अलग लड़ें, तो यह नाराज वोट हमें मिल सकता है।
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने ये भी तय किया है कि पूरी तरह पुल नहीं तोड़ेंगे। पहले अपनी ताकत दिखाओ, बाद में नतीजों के बाद अगर जरूरत पड़ी तो बात कर लो। पार्टी के सूत्र कहते हैं कि कांग्रेस को अपनी कीमत बढ़ानी है। अकेले लड़कर अच्छा प्रदर्शन करेंगे तो गठबंधन की शर्तें भी हमारी मर्जी से तय होंगी।
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विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान ने मुंबई कांग्रेस से कहा है कि पूरी ताकत से अलग चुनावी तैयारी शुरू करें। वार्ड स्तर तक अपनी मशीनरी को मजबूत करें।पोस्टर-बैनर में कांग्रेस की अलग पहचान उभारे। “राजनीति में दोस्त भी होते हैं, प्रतिद्वंद्वी भी, वक्त आने पर सब संभाल लेंगे।
मुंबई महानगरपालिका सिर्फ एक चुनाव नहीं महाराष्ट्र की राजनीति का दरवाजा है। भारत की सबसे अमीर नगरपालिका में सत्ता हासिल करना मतलब विकास का नियंत्रण और राजनीतिक रसूख। बीते चुनाव में शिवसेना ने बाजी मारी थी। लेकिन अब उद्धव गुट, शिंदे गुट, बीजेपी, एनसीपी के 2 गुट और कांग्रेस का अलग मोर्चा इनके बीच मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है। अलग लड़ते हुए भी मित्र पक्ष को नाराज ने करते हुए बाहरी समर्थन का दांव भी खेला जाएगा क्या यह भी संभावनाए बन सकती है।