अजित पवार, सीएम फडणवीस, एकनाथ शिंदे
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने मराठा समाज की आरक्षण मांग को स्वीकार कर मनोज जरांगे को शांत कर दिया है, लेकिन अब ओबीसी समाज की नाराजगी बढ़ती जा रही है। ओबीसी समुदाय के नेताओं ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है और कोर्ट में लड़ाई लड़ने का भी ऐलान किया है। जिस तरह मराठा समाज को साधकर बीजेपी ने राहत पाई थी, अब ओबीसी ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
महाराष्ट्र में मनोज जरांगे की मांग को मानते हुए फडणवीस सरकार ने ‘हैदराबाद गजट’ लागू कर मराठा समाज को ‘कुनबी’ जाति का दर्जा देकर बड़ा दांव चला है। कुनबी जाति पहले से ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) श्रेणी में शामिल है। ऐसे में मराठा समाज अब मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण का लाभ ले सकेगा।
मराठा समाज की मांग मानकर बीजेपी ने ओबीसी समाज की नाराजगी को आमंत्रित कर लिया है। महाराष्ट्र सरकार के मंत्री छगन भुजबल ने अब अपनी ही सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। ओबीसी समाज की नाराजगी को देखते हुए फडणवीस सरकार अब डैमेज कंट्रोल में जुटी है।
महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने ‘हैदराबाद गजट’ को लागू करने की स्वीकृति दे दी है, जिससे मराठों को सीधे कुनबी दर्जा मिल सकेगा। मराठवाड़ा क्षेत्र के मराठाओं को कुनबी प्रमाणपत्र मिलेगा और वे ओबीसी आरक्षण के पात्र बनेंगे। इस निर्णय से ओबीसी समुदाय में बीजेपी के प्रति नाराजगी बढ़ गई है।
ओबीसी के वरिष्ठ नेता और राज्य के मंत्री छगन भुजबल ने बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में भाग नहीं लिया। इसके बाद उन्होंने खुलकर फडणवीस सरकार के फैसले का विरोध किया। बैठक से पूर्व वे उपमुख्यमंत्री अजित पवार से मिले और स्पष्ट किया कि मराठा समाज को ओबीसी में शामिल करने से आरक्षण का संतुलन गड़बड़ा जाएगा। भुजबल ने मराठा समाज को कुनबी प्रमाणपत्र देने के सरकारी निर्णय के खिलाफ अदालत का रुख करने की बात कही है।
भुजबल ने कहा कि उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि मुख्यमंत्री फडणवीस मराठा समाज को लेकर ऐसा निर्णय लेंगे। वे इस फैसले को अदालत में चुनौती देंगे और कानूनी लड़ाई जारी रखेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार और कैबिनेट उप-समिति ने आरक्षण का निर्णय लेने से पहले न तो कैबिनेट को विश्वास में लिया और न ही ओबीसी समाज से विचार-विमर्श किया। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उप-समिति और मुख्यमंत्री ऐसा कदम उठाएंगे।
राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ का कहना है कि फडणवीस सरकार ने मराठा समाज को आरक्षण देकर ओबीसी समुदाय के साथ विश्वासघात किया है। वे नहीं चाहते थे कि मराठों को ओबीसी कोटे से आरक्षण मिले। महासंघ ने स्पष्ट किया है कि वे इस निर्णय के खिलाफ अदालत से लेकर सड़कों तक संघर्ष करेंगे।
मराठा समाज को आरक्षण देने के फैसले से ओबीसी समुदाय बीजेपी और फडणवीस सरकार से नाराज हो गया है। वे अदालत में केस लड़ने और सड़कों पर उतरने का एलान कर चुके हैं। ओबीसी के सख्त रुख को देखते हुए सरकार ने मराठा उप-समिति की तर्ज पर ओबीसी के लिए कैबिनेट उप-समिति का गठन किया है, जिसे डैमेज कंट्रोल की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
कैबिनेट उप-समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं बीजेपी नेता और राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले। समिति में मंत्री छगन भुजबल, गणेश नाईक, गुलाबराव पाटिल, संजय राठौड़, पंकजा मुंडे, अतुल सावे और दत्तात्रय भरणे को सदस्य बनाया गया है। यह समिति पूरी तरह ओबीसी समुदाय के नेताओं से बनी है।
महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि यह समिति ओबीसी वर्ग के लिए विकासात्मक नीतियों पर सुझाव देगी। यह राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं की समीक्षा करेगी और उनके क्रियान्वयन पर निगरानी रखेगी।
साथ ही यह समिति ओबीसी समुदाय की सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक स्थिति पर चर्चा करेगी और आरक्षण से संबंधित सभी प्रशासनिक और वैधानिक पहलुओं का समन्वय बनाए रखेगी। अदालत में लंबित मामलों में सरकार का पक्ष रखने वाले अधिवक्ताओं से भी यह समिति तालमेल रखेगी और आवश्यक निर्देश देगी। सरकार इसे ओबीसी की नाराजगी दूर करने की दिशा में एक प्रयास मान रही है।
महाराष्ट्र सरकार ने 2023 में मराठा समाज को कुनबी जाति के तहत आरक्षण देने की पहल की थी। इसके विरोध में ओबीसी समाज सड़कों पर उतर आया था, जिससे सरकार को कदम पीछे खींचना पड़ा। इसके बाद से मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच तनाव गहराता गया। गांव-गांव में दोनों के बीच दूरी और नाराजगी बढ़ी।
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अब जब फडणवीस सरकार ने ‘हैदराबाद गजट’ लागू कर मराठा समाज को कुनबी प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया शुरू की है, ओबीसी समाज फिर से आक्रोशित हो गया है। ओबीसी नेताओं का मानना है कि मराठा समाज को ओबीसी में शामिल करने से पिछड़ी जातियों को आरक्षण का नुकसान होगा, और यह निर्णय बीजेपी के लिए गंभीर सियासी संकट खड़ा कर सकता है।