
उद्धव-राज के प्रेम से बीजेपी बैचैन ( photo credit; social media)
मुंबई: मराठी वोटों के विभाजन का नुकसान पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पार्टी ‘शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ (यूबीटी) और राज ठाकरे की पार्टी ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ को बार-बार भुगतना पड़ रहा है। राज और उद्धव को इसका एहसास महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के परिणामों के बाद हुआ है।
जब यूबीटी को 20 सीटों से संतोष करना पड़ा जबकि मनसे का खाता भी नहीं खुल पाया। इससे सबक लेते हुए राज ने उद्धव के साथ मतभेदों को भुलाकर साथ आने की इच्छा जताई थी, जिसके जवाब में उद्धव ने भी सकारात्मक प्रतिसाद दिया था। उसके बाद उद्धव के खेमे से सांसद संजय राऊत, विधायक आदित्य ठाकरे और अनिल परब युति के लिए बातचीत शुरू करने की अपील राज ठाकरे से कर चुके हैं। दूसरी तरफ राज और उद्धव के बीच बढ़ते प्रेम से बीजेपी की बेचैनी बढ़ने लगी है।
बीजेपी मुंबई पर करेगी कब्जा
शिवसेना को तोड़कर उद्धव ठाकरे से पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह छीनने के बाद भी बीजेपी उद्धव ठाकरे को पूरी तरह तोड़ नहीं पाई है। पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह छिनने के बाद भी लोकसभा चुनाव में 9 सांसदों को जीत दिला कर उद्धव ने बीजेपी को झटका दिया तो वहीं विधानसभा चुनाव 2024 में यूबीटी को 20 सीटों पर रोक कर बीजेपी ने उद्धव पर पलटवार किया था। अब उद्धव की कमर तोड़ने के लिए बीजेपी मुंबई पर किसी भी कीमत पर कब्जा जमाने का प्रयास कर रही है। लेकिन उद्धव और राज के एक होने से बीजेपी के मंसूबों पर पानी फिर सकता है।
शिंदे की शिवसेना भी होगी कमजोर
बीजेपी ने शिवसेना में एकनाथ शिंदे से बगावत कराई। उसके 40 विधायक, 9 सांसदों एवं आधे से ज्यादा नगरसेवकों व पदाधिकारियों को भी तोड़ लिया। बीजेपी की ‘मदद’ से शिंदे को पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह भी मिल गए। लेकिन यह सच्चाई है पार्टी का आम कार्यकर्ता शिंदे की शिवसेना के साथ नहीं आया है। भले ही लोकसभा चुनाव में शिंदे की शिवसेना का स्ट्राइक रेट बीजेपी से अच्छा रहा। विधानसभा में भी उससे बहुत अच्छी सफलता मिली लेकिन इसमें शिंदे की शिवसेना को मिले बीजेपी के वोट और उद्धव-राज के बीच हुए मराठी मतों के विभाजन की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। इस सच्चाई से वाकिफ होने की वजह से बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व राज और उद्धव के साथ आने से चिंतित हो गया।
टूट सकती है शिंदे की शिवसेना
शिंदे के साथ बीजेपी नीत महायुति में जानेवाले ज्यादातर नेताओं, सांसदों, विधायकों, नगरसेवकों व आम पदाधिकारियों ने सत्ता के समर्थन, चुनाव में टिकट, जीत की गारंटी, मंत्री पद व ‘फंड’ के लालच में पाला बदला था। लेकिन ज्यादातर लोगों के हाथ अब तक निराशा ही लगी है। इनमें से कई लोग अभी भी ठाकरे परिवार के प्रति निष्ठा रखते हैं और वो फिर से पाला बदल सकते हैं। इसलिए निकाय चुनावों की पृष्ठभूमि में उद्धव और राज के साथ आने से उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना का कमजोर होना तय माना जा रहा है। इसका खामियाजा निकाय चुनावों खासकर मुंबई मनपा में बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है।






