गोपीचंद पडलकर के खिलाफ ईसाई समाज का आक्रोश मार्च (सौजन्यः सोशल मीडिया)
जालना: भाजपा विधायक गोपीचंद पडलकर के विवादित बयान ने महाराष्ट्र की सियासत में हलचल मचा दी है। ईसाई धर्मगुरुओं और पूरे ईसाई समुदाय पर अपमानजनक टिप्पणी के विरोध में सोमवार को जालना शहर में ईसाई समाज ने आक्रोश मार्च निकाला। गांधी चौक से शुरू हुए इस बड़े मार्च में सैकड़ों लोग शामिल हुए। नारों की गूंज और बैनर-पोस्टरों के साथ भीड़ ने सरकार और विधायक पर जमकर निशाना साधा। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचकर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी सौंपा।
धर्मगुरुओं का अपमान नहीं सहेंगे, पडलकर माफी मांगो इन नारों ने साफ संकेत दे दिया कि ईसाई समाज इस मुद्दे को यूं ही नहीं जाने देगा। विधायक गोपीचंद पडलकर ने हाल ही में एक बयान में ईसाई धर्मगुरुओं को धर्मांतरण के लिए जिम्मेदार बताया और एक युवती की आत्महत्या से इसे जोड़ने की कोशिश की। ईसाई समाज का आरोप है कि विधायक ने जानबूझकर झूठा और भड़काऊ आरोप लगाया। युवती की आत्महत्या का हमारे समाज से कोई लेना-देना नहीं, फिर भी हमें बदनाम किया गया।
ज्ञापन में कहा गया कि विधायक पडलकर ने केवल ईसाई समाज की भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाई, बल्कि समाज में नफरत और अशांति फैलाने की कोशिश की है। ईसाई समाज के नेताओं ने आरोप लगाया कि पडलकर का बयान केवल धर्म विशेष पर नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर हमला है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने कार्रवाई नहीं की तो आंदोलन और तेज होगा। हम सड़कों से लेकर विधानसभा तक अपनी आवाज बुलंद करेंगे।
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इस बड़े मार्च में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेता भी शामिल हुए। कांग्रेस सांसद डॉ. कल्याण काले और पूर्व विधायक कैलास गोरंट्याल ने मंच से सरकार और भाजपा को जमकर घेरा। कांग्रेस के शहर अध्यक्ष शेख महमूद, शिवराज जाधव और अन्य स्थानीय नेताओं ने भी मोर्चे में सक्रिय भाग लिया। कांग्रेस नेताओं ने साफ तौर पर कहा, “भाजपा के नेता समाज में जहर घोल रहे हैं। यह सांप्रदायिक राजनीति है। सरकार को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।”
इस मार्च का नेतृत्व भव उगले, लालबहादुर कांबले, चंद्रसेन निर्मल, डी. वाय. भालेराव, रविकांत दानम, अनिल साठे, दीपक केदार जैसे प्रमुख समाज नेताओं ने किया। प्रदर्शन में महिलाओं और युवाओं की भी बड़ी संख्या देखी गई। जालना का यह मार्च केवल एक शहर का विरोध नहीं रह गया। ईसाई समाज ने साफ कर दिया है कि वे पूरे राज्य में आंदोलन छेड़ेंगे। विपक्ष ने इसे भाजपा की “सांप्रदायिक राजनीति” का उदाहरण बताया है और विधानसभा में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की तैयारी कर ली है।
विधायक पडलकर की तरफ से कोई सफाई नहीं आई है। भाजपा नेतृत्व भी फिलहाल चुप्पी साधे है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह मुद्दा भाजपा के लिए “गले की हड्डी” बन सकता है। यदि पार्टी ने पडलकर के खिलाफ कार्रवाई नहीं की तो विपक्ष इसे चुनावी हथियार बना सकता है। गोपीचंद पडलकर के विवादित बयान ने महाराष्ट्र की राजनीति को गर्मा दिया है। ईसाई समाज के गुस्से ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अब सबकी नजर इस पर है कि भाजपा विधायक माफी मांगते हैं या भाजपा उन्हें बचाने की कोशिश करती है। जो भी हो, यह मुद्दा आने वाले दिनों में और भड़क सकता है और सत्ता के गलियारों में हड़कंप मचा सकता है।