शिवाजी महाराज की प्रतिमा (फोटो: सोशल मीडिया)
मुंबई. महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के गिरने से राजनितिक गरमाई है। इस घटना को लेकर विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) महायुति सरकार पर हमलावर है। एमवीए ने इस घटना के जिम्मेद्दार लोगों के खिलाफ करवाई और एक मजबूत और बड़ी प्रतिमा स्थापित करने की मांग की है। वहीं, इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने जनता से माफी मांग ली है। हालांकि, सवाल यह है कि महज 9 महीने में ही शिवाजी महाराज की प्रतिमा कैसे गिर गई?
एक कंसल्टेंसी कंपनी से जुड़े संरचना इंजीनियर अमरेश कुमार ने कहा कि महाराज की प्रतिमा के गिरने के पीछे संभवत: जंग लगे नट और बोल्ट हो सकते हैं। कुमार ने कहा कि प्रतिमा के ‘टखने’, जहां पूरे ढांचे का वजन रहता है, स्थिरता के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं और इसलिए डिजाइन चरण के दौरान इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। गत सोमवार दोपहर को, तटीय सिंधुदुर्ग जिले के राजकोट किले में मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की 35 फुट ऊंची मूर्ति गिर गई थी। भारतीय नौसेना द्वारा निर्मित इस मूर्ति का अनावरण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगभग नौ महीने पहले किया था।
अधिकारियों ने दावा किया है कि 45 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से बहने वाली हवाओं के कारण यह प्रतिमा ढह गई, जबकि भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार, किसी संरचना को डिजाइन करते समय इनसे लगभग तीन गुना अधिक हवा की गति को भी ध्यान में रखा जाता है।
कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “इस प्रतिमा के मामले में, भार या जलवायु परिस्थितियों जैसे बाहरी कारकों ने परेशानी पैदा नहीं की। जैसा कि पीडब्ल्यूडी रिपोर्ट में बताया गया है, नट और बोल्ट में जंग लगने से प्रतिमा के अंदर फ्रेम वाली स्टील की सामग्री कमजोर होने से ऐसा हुआ हो सकता है।”
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महाराष्ट्र लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के एक सहायक अभियंता ने 20 अगस्त को नौसेना कमांडर अभिषेक करभारी, क्षेत्र तटीय सुरक्षा अधिकारी और क्षेत्र नागरिक-सैन्य संपर्क अधिकारी को पत्र लिखकर बताया था कि प्रतिमा को लगाने में इस्तेमाल किए गए नट और बोल्ट समुद्री हवाओं तथा बारिश के संपर्क में आने के कारण जंग खा रहे थे। उन्होंने सिफारिश की कि प्रतिमा के फ्रेम के ‘स्टील मेंबर्स’ के साथ-साथ नट और बोल्ट को भी पेंटिंग आदि करके संरक्षित किया जाना चाहिए। खासकर तटीय क्षेत्रों में ऐसा किया जाना चाहिए जहां हवा में नमी और लवण होता है, जिससे जंग की समस्या आती है। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रतिमा स्थल पर विशेष रूप से उन्हें स्थापित करने से पहले नियमित जांच आवश्यक है।
शिवाजी की प्रतिमा गिरने की घटना पिछले साल जून में ओडिशा के बिरसा मुंडा हॉकी स्टेडियम और राउरकेला हवाई अड्डे के पास 40 फुट ऊंची एक मूर्ति के गिरने से काफी मिलती-जुलती है। दोनों ही प्रतिमाएं ‘टखने’ वाली जगह से गिरीं। शिवाजी महाराज की प्रतिमा गिरने के मामले में संरचना इंजीनियर चेतन पाटिल के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। उन्होंने दावा किया है कि वह प्रतिमा बनाने के लिए ‘स्ट्रक्चरल कंसल्टेंट’ नहीं थे।
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उन्होंने कहा, “मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं है। मेरे पास कोई कार्य आदेश नहीं था जिसके लिए मुझे नियुक्त किया गया था। यह काम ठाणे स्थित फर्म को दिया गया था। मुझे बस उस मंच पर काम करने के लिए कहा गया था जिस पर मूर्ति बनाई जा रही थी।”
पाटिल का नाम कलाकार जयदीप आप्टे के साथ प्राथमिकी में दर्ज है। पाटिल ने मराठी चैनल ‘एबीपी माझा’ से फोन पर बात करते हुए कहा कि उन्होंने लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के माध्यम से भारतीय नौसेना को मंच का डिजाइन सौंपा था और प्रतिमा से उनका कोई लेना-देना नहीं है। पाटिल को चैनल से यह कहते सुना जा सकता है, ‘‘यह ठाणे की एक कंपनी थी जिसने प्रतिमा से संबंधित काम किया था।” (एजेंसी इनपुट के साथ)