लॉयड्स मेटल कंपनी को बड़ी राहत। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
गड़चिरोली: महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल और खनिज संपन्न जिले गड़चिरोली से जुड़ी सूरजगढ़ लौह अयस्क खदान के विस्तार को लेकर लंबी कानूनी लड़ाई अब समाप्त हो गई है। मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने इस खदान विस्तार के विरुद्ध दायर 2 जनहित याचिकाओं को “गैर-गंभीर” और “स्वार्थ प्रेरित” बताते हुए खारिज कर दिया है। इस निर्णय में अदालत ने स्पष्ट किया कि खदान विस्तार की अनुमति प्रक्रिया में पर्यावरणीय, प्रशासनिक तथा विधिक सभी नियमों का पूर्ण और पारदर्शी पालन किया गया है। यह निर्णय लॉयड्स मेटल एंड एनर्जी लिमिटेड के लिए राहतकारी सिद्ध हुआ है, जो इस परियोजना की संचालक कंपनी है।
“गड़चिरोली से कोई संबंध नहीं, फिर भी विरोध क्यों?”इस प्रकरण में जनहित याचिका दाखिल करने वाले समरजीत चटर्जी, छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर निवासी हैं। वे पहले खनन कार्य से जुड़े ठेकेदार रह चुके हैं और अब आयुर्वेदिक औषधियों का छोटा पारिवारिक व्यवसाय करते हैं। उनकी वार्षिक आय लगभग चार से पाँच लाख रुपये है।
अदालत ने अपने निर्णय में इस बात पर गंभीर आपत्ति जताई कि याचिकाकर्ता का गड़चिरोली या सूरजगढ़ खदान क्षेत्र से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। वे इस स्थल से लगभग 300 किलोमीटर दूर रहते हैं और वहां की खनन गतिविधियों से उन्हें कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हानि नहीं हो रही है।न्यायालय की टिप्पणी थी की “इस प्रकार की याचिकाएं यदि वास्तविक जनहित के बजाय केवल व्यक्तिगत या व्यावसायिक स्वार्थ की पूर्ति हेतु दायर की जाएं, तो यह न्याय व्यवस्था के दुरुपयोग की श्रेणी में आता है।”
न्यायमूर्ति नितीन सांबरे और अभय मंत्री की खंडपीठ ने यह निर्णय 9 मई को लिखित रूप में दिया था, जिसे हाल ही में न्यायालय की वेबसाइट पर सार्वजनि किया गया। पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता दंडनीय हैं, क्योंकि उन्होंने जनहित याचिका की भावना को आहत किया है, परंतु उनकी सीमित आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन पर दंड नहीं लगाया गया।
याचिका में क्या थे आरोप?याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दावा किया था कि 18 जुलाई 2022 को सूरजगढ़ खदान की वार्षिक उत्पादन क्षमता को 30 लाख टन से बढ़ाकर 1 करोड़ टन किया गया, 24 फरवरी 2023 को इसके लिए पर्यावरणीय स्वीकृति दी गई और 26 नवंबर 2024 को उत्पादन बढ़ाकर 6 करोड़ मीट्रिक टन करने हेतु नई प्रक्रिया शुरू की गई।उनका आरोप था कि इन प्रक्रियाओं में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित टर्म्स ऑफ रेफरेंस ( Tor), ऑफिस मेमोरेंडम (OM) और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) का पालन नहीं किया गया। लेकिन उच्च न्यायालय ने इन सभी आरोपों को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया।
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गड़चिरोली की जनता के लिए सकारात्मक संकेत गड़चिरोली जैसे जिले, जहां प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है, वहां खनन जैसी परियोजनाएं अनेक बार विवादों और जनविरोध का कारण बनती हैं। किंतु यह निर्णय दर्शाता है कि यदि प्रक्रिया पारदर्शी, नियमबद्ध और कानूनी हो, तो न्यायालय विकास के पक्ष में खड़ा होता है।
यह भी संदेश है कि जनहित याचिकाओं का मंच केवल समाज की वास्तविक भलाई के लिए होना चाहिए, न कि निजी पूर्वाग्रह, क्षेत्रीय राजनीति या व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा का माध्यम।यह प्रकरण गड़चिरोली जिले में विकास के साथ-साथ न्यायिक विवे की मिसाल बनकर उभरा है। सूरजगढ़ खदान का विस्तार अब न्यायिक मुहर के साथ आगे बढ़ेगा, और यह फैसला भविष्य में जनहित याचिकाओं के दायरे और मर्यादा को लेकर एक महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है।