प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: सोशल मीडिया)
Nagpur City News: नागपुर के सदर पुलिस थाना में दर्ज एक जालसाजी और आपराधिक साजिश से जुड़े मामले में गिरफ्तारी की आशंका के चलते पूर्व शिक्षाधिकारी संजय डोर्लीकर ने अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की। दोनों पक्षों की दलीलों के बाद हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी। अधिकारी पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर अनुमोदन देने और कथित तौर पर 8 लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप है।
इस मामला में पुलिस ने आईपीसी की धारा 420, 465, 468, 471, 472, 409, 120-B सहपठित धारा 34 के तहत मामला दर्ज किया है। डोर्लीकर पर आरोप है कि उन्होंने नानाजी पुडके विद्यालय, जेवतला, तहसील लाखनी, जिला भंडारा में कार्यरत पराग नानाजी पुडके के मामले में गलत तरीके से अनुमोदन दिया।
अभियोजन पक्ष की पैरवी कर रहे वकील ने अग्रिम जमानत याचिका का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि जांच के दौरान अधिकारी की मामले में संलिप्तता सिर्फ अनुमोदन देने तक सीमित नहीं है बल्कि उन्हें आर्थिक लाभ भी हुआ है।
अभियोजन पक्ष ने अदालत का ध्यान आपराधिक आवेदन (ABA) संख्या 360/2025 में इस अदालत द्वारा पारित एक आदेश की ओर आकर्षित किया जिसमें यह स्पष्ट रूप से देखा गया था कि आवेदक ने प्रस्ताव को मंजूरी दिलाने के लिए आरोपी नंबर 1 से अपने और शिक्षाधिकारी संजय डोर्लीकर (वर्तमान आवेदक) के लिए 8 लाख रुपये की राशि प्राप्त की थी। इस अदालत के आदेश की पुष्टि सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष अनुमति याचिका संख्या 9230/2025 में भी की है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश के पैरा 3 में विशेष रूप से उल्लेख किया था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ धोखाधड़ी की गतिविधियों के लिए 8 लाख रुपये की राशि स्वीकार करने और साजिश का हिस्सा होने का विशिष्ट आरोप है।
हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने और जांच के कागजात तथा गवाहों के बयानों की जांच करने के बाद पाया कि 31 दिसंबर 2022 का अनुभव प्रमाणपत्र जाली और फर्जी है। संबंधित सोसाइटी के पदाधिकारियों ने ऐसा कोई प्रमाणपत्र जारी करने से इनकार किया है।
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यह भी सामने आया है कि सह-आरोपी के पास सहायक शिक्षक के पद पर काम करने का कोई अनुभव नहीं था और वह प्रधानाध्यापक के पद पर नियुक्ति के लिए पात्र नहीं था, फिर भी उसकी नियुक्ति के अनुमोदन का प्रस्ताव केवल एक दिन में मंजूर कर दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि सह-आरोपी के अनुसार, वर्तमान याचिकाकर्ता और अन्य सह-आरोपियों ने उक्त अनुमोदन देने और प्रस्ताव को मंजूरी दिलाने के लिए 8 लाख रुपये की राशि प्राप्त की है। मामले में असामान्य जल्दबाजी भी किसी अनुचित गतिविधि का संकेत देती है।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अधिकारी एक शिक्षाधिकारी के रूप में कार्यरत थे और उन्होंने जांच एजेंसी के साथ सहयोग किया है, इसलिए उनकी हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने कार्यकाल के दौरान कुल 51 मामलों पर विचार किया था, जबकि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत चार्ट में केवल 11 मामले दिखाए गए हैं।