मनपा आयुक्त को अवमानना नोटिस (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Nagpur Municipal Commissioner: सेवाकाल में जाति प्रमाणपत्र वैध रहने पर सेवानिवृत्ति लाभ नहीं रोके जा सकते हैं। इस तरह का आदेश हाई कोर्ट ने रिट याचिका पर सुनवाई में जारी किया था। साथ ही 8 सप्ताह के भीतर लाभों का भुगतान करने का आदेश भी दिया था। लेकिन आदेशों का पालन नहीं किए जाने पर अब संजय गट्टू ने हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है। इस पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने मनपा आयुक्त को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब दायर करने का आदेश दिया।
रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया था कि यदि किसी कर्मचारी के सेवाकाल के दौरान उसके जनजाति दावे की वैधता पर कोई वैधानिक निर्णय नहीं हुआ है तो उसके सेवानिवृत्ति लाभों को रोका नहीं जा सकता है। मीटर रीडर के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद सेवानिवृत्ति लाभों को लेकर गहू ने रिट याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता संजय गंगाईया गट्ट को 4 नवंबर 1996 को अन्य प्रतिवादी के साथ ‘हल्बी’ अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पद पर मीटर रीडर के रूप में नियुक्त किया गया था। वे 30 सितंबर 2022 को सेवानिवृत्त हुए। याचिकाकर्ता का जनजाति दावा 4 सितंबर 2018 को अमान्य कर दिया गया था। आयोग के इस आदेश को चुनौती देते हुए गट्टू ने रिट याचिका दायर की थी जिस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2018 से इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी किया था।
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रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया था कि जांच समिति ने ‘तेलंगा दर्जी’ या ‘ (तेलुगु) मन्नेवार’ के रूप में जाति दर्ज करने वाले दस्तावेजों पर भरोसा किया, ताकि याचिकाकर्ता के दावे की वैधता से इनकार किया जा सके। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत के पहले के आदेश (रिट याचिका संख्या 4579/2004, 9 जनवरी 2018) का भी हवाला दिया और तर्क दिया कि वही गलती फिर से दोहराई गई है। यह भी प्रस्तुत किया गया है कि जांच समिति द्वारा देखे गए दस्तावेज किसी भी तरह से निर्णायक नहीं हैं।
अदालत ने ‘हेमंत गोविंदराव लांघे बनाम उपनिदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं, नागपुर सर्कल’ के मामले में अपने पहले के फैसले का हवाला दिया था। उस मामले में अदालत ने कहा था कि यदि सेवाकाल के दौरान कोई वैधानिक निर्णय नहीं हुआ था तो सेवानिवृत्ति के लाभों को रोका नहीं जा सकता।