आरएसएस नेता सुरेश भैयाजी जोशी (सोर्स - सोशल मीडिया)
नागपुर: पूर्व आरएसएस महासचिव व वरिष्ठ नेता सुरेश भैयाजी जोशी ने औरंगजेब की कब्र को हटाने के विवाद को अनावश्यक बताते हुए कहा कि यह विषय अनावश्यक रूप से उठाया गया है। उन्होंने नागपुर में मीडिया से बातचीत में कहा कि यदि किसी की श्रद्धा है तो वह कब्र पर जाएगा, लेकिन इसे राजनीतिक मुद्दा बनाना उचित नहीं। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्शों का उदाहरण देते हुए कहा कि शिवाजी महाराज ने ही अफजल खान की कब्र बनवाई थी, जो भारत की उदारता और समावेशिता का प्रतीक है। यह बयान उस समय आया है जब महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद गहराया हुआ है।
बता दें कि यह बयान उस समय आया है जब महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद गहराया हुआ है। इसी विवाद पर पूर्व महासचिव रहे भैयाजी जोशी ने कहा कि इस विवाद के बेवजह ही तूल दिया जा रहा है। आगे उन्होंने कहा शिवाजी महाराज ने अपने उच्च आदर्शों का उदाहरण देते हुए अफजल खान की कब्र प्रतापगढ़ किले के पास है जिसे बिना शिवाजी महाराज की अनुमति के नही दफनाया जा सकता है।
मुगल शासक औरंगजेब की कब्र को लेकर छिड़े विवाद पर भैयाजी जोशी ने कहा कि इस विषय को बेवजह तूल दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसे वहीं दफनाया जाता है। सुरेश भैया जी ने कहा कि बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को प्रतापगढ़ किले के पास दफनाया गया था और यह बिना छत्रपति शिवाजी महाराज की अनुमति के ऐसा बिल्कुल नहीं किया जा सकता था। शिवाजी और औरंगजेब की लड़ाई दो विचारधाराओं की लड़ाई थी। आगे इस विवाद को लेकर सुरेश भैयाजी के बयान के अलावा राज ठाकरे ने भी इतिहास की बात को लेकर लोगों से इसे चश्में न लगाकर देखने के लिए कहा है।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने भी इतिहास को धर्म और जाति के चश्मे से न देखने की सलाह दी थी। ठाकरे ने इस विवाद को बेकार बताते हुए कहा कि हमें कब्र की नहीं, बल्कि पानी और पर्यावरण की चिंता करनी चाहिए। मुगल बादशाह औरंगजेब विवाद पर राज ठाकरे ने कहा कि औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी की विचारधारा को खत्म करने के लिए महाराष्ट्र में 27 साल बिताए, लेकिन वह इसमें असफल रहा। इसके बावजूद शिवाजी के बेटे संभाजी महाराज ने आगरा से भागे औरंगजेब के बेटे को शरण दी थी।
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यह भारत की सहिष्णुता और मराठा शासकों की उदारता को दर्शाता है। यह पूरा विवाद इतिहास की घटनाओं को गलत ढंग से प्रस्तुत करने और राजनीति से प्रेरित मुद्दों को हवा देने का एक उदाहरण है। इतिहास को सही संदर्भों में देखने और बेवजह के विवादों से बचने की जरूरत है।