
भंडारा. धान उत्पादकों के जिले के रूप में ख्यात भंडारा जिले में धान की अनेक प्रजातियां हैं, इन सभी प्रजातियों में से एक जय श्रीराम चावल के खरीदार सबसे ज्यादा हैं, जबकि दूसरे स्थान पर चिन्नोर. सबसे खास बात यह है कि कभी जिले में सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले दूबराज चावल की स्थिति तो ऐसी हो गई है कि वह जिले से हद्दपर होने की स्थिति में आ गया है.
किसी दौर में एचएमटी धान की फसल सबसे ज्यादा लगायी जाती थी, लेकिन दौर बदला और अब जय श्रीराम प्रजाति का चावल सबसे ज्यादा पसंद किया जाने लगा है. जय श्रीराम प्रजाति के बाद चेन्नूर, पीएनआर, 1010 तथा सुवर्णा प्रजातियों का नंबर आता है.
सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि किसी दौर में खरीदारों की नज़र में स्थान पाने वाले दूबराज चावल तो मानो हद्दपार हो चला है. जय श्रीराम प्रजाति का चावल बहुत ही बारीक होता है, साथ ही इस चावल में खुशबू भी होती है. कुछ धान उत्पादक जय श्रीराम से साथ 1010 प्रजाति के धान के उत्पादन की ओर ध्यान दे रहे हैं.
कुछ किसान 1008 तो कुछ सुवर्णा, केसर के उत्पादन की ओर भी बढ़े हैं, लेकिन जहां तक बाजार में नंबर वन होने की बात है तो इसमें पहले स्थान पर है जय श्रीराम प्राजाति का चावल. इस प्रजाति के चावल की मांग सबसे ज्यादा है. यह चावल हर ग्राहक की पहली पसंद बन गया है. यह चावल बिक्री के मामले में पूरे जिले पहले स्थान पर है, जबकि चेन्नूर को दूसरी पसंद के रूप में स्वीकार्य किया जा रहा है.
जयश्रीराम चावल की सबसे ज्यादा मांग होने के बाद भी इस चावल का प्रति किलो भाव 55 रुपए है, जबकि मांग के मामले में दूसरे स्थान पर रहने वाले चेन्नूर चावल का भाव 68 रुपए हैं. कहा जा रहा है कि अगर चेन्नूर चावल का प्रतिकिलो भाव जयश्रीराम चावल के प्रतिकिलो के आसपास होता तो ग्राहक उसकी ओर ज्यादा प्रभावित होते.
चेन्नूर चावल प्रतिकिलो 13 रूपए महंगा होने के कारण इस चावल को खरीदने वालों की संख्या जयश्रीराम चावल की तुलना में कम है. भंडारा जिले से मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के कुछ इलाके सीमावर्ती क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. मध्यप्रदेश में बासमती चावल का बहुत ज्यादा उत्पादन होता है. इस चावल की मध्यप्रदेश के साथ-साथ महाराष्ट्र के पुणे तथा चंद्रपुर में ज्यादा मांग रहती है.
भंडारा जिले में भी चेन्नूर चावल का उत्पादन किया जाता है.भंडारा जिले से भी विभिन्न प्रजातियों के चावल को बिक्री के लिए भेजा जाता था, भंडारा जिले में किसी दौर में सबसे ज्यादा उत्पादित होने वाला दूबराज चावल अब खत्म होने की कगार पर आ गया है. दूबराज की तरह ही एचएमटी प्रजाति के चावल भी समाप्त होने की राह पर हैं.
कुछ जानकारों ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि जिले में पिछले पांच-छह वर्षों में जिला के साथ-साथ अन्य स्थानों में जयश्रीराम, चिन्नूर चावल की मांग बढ़ी है. यह चावल बारीक तथा सुंगध युक्त होने की वजह से इसे खरीदने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है.






