100 वर्षों से सिंचाई को पानी दे रही नहरें
Bhandara Irrigation Canals: सातपुड़ा की गोद में बसा ऐतिहासिक चांदपुर तालाब कभी ब्रिटिश अधिकारियों की शान हुआ करता था। इसकी सुंदरता और विशालता ने अंग्रेजों तक को आकर्षित कर लिया था। उन्होंने यहां एक रेस्ट हाउस बनवाया, तालाब को सजाया और सिंचाई के लिए मजबूत नहरों का जाल बिछाया जो आज 100 वर्ष बाद भी किसानों के खेतों तक पानी पहुंचा रही हैं।
लेकिन अफसोस, यही तालाब अब सरकारी लापरवाही का शिकार बन चुका है। वर्षों से सफाई और रखरखाव के अभाव में यह तालाब गाद से पटता जा रहा है, जबकि सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित हैं।
ब्रिटिश काल में निर्मित नहरें आज भी मजबूती से खड़ी हैं, जबकि राज्य सरकार का मरम्मत और नवीनीकरण कार्य केवल घोषणाओं में सिमटा हुआ है। सिहोरा क्षेत्र के करीब 40 से 45 गांवों की खेती आज भी इन्हीं पुरानी और जर्जर नहरों पर निर्भर है।
सवाल यह है कि आधुनिक तकनीक और योजनाओं के दौर में भी सरकारें इस ऐतिहासिक धरोहर की सुध क्यों नहीं ले रहीं? जिन नहरों को अंग्रेजों ने पत्थरों से तराशा था, उन्हें आज तक कोई छू भी नहीं सका। किसानों को पानी चाहिए, लेकिन शासन के पास केवल अधूरे वादे हैं।
सातपुड़ा की पर्वत श्रेणियों से घिरा चांदपुर तालाब प्रकृति का अनमोल उपहार है। किनारों पर ऊंचे वृक्ष, सालभर जलसंचय सब कुछ है, बस नहीं है तो देखभाल और जिम्मेदारी का भाव।
अगर यही हाल रहा, तो आने वाले वर्षों में यह ऐतिहासिक धरोहर केवल इतिहास की किताबों तक सीमित रह जाएगी। ब्रिटिशों की बनाई नहरें आज भी किसानों को जीवनदायिनी जलधारा प्रदान कर रही हैं, जबकि हमारे शासन की योजनाएं फाइलों में धूल फांक रही हैं।
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क्या हम अपने इतिहास और धरोहरों को सहेजने की संवेदनशीलता खो चुके हैं? चांदपुर तालाब आज भी पानी देता है, लेकिन उसकी पुकार अब भी अनसुनी है।