भंडारा चुनाव (सौजन्य-सोशल मीडिया)
BJP NCP Alliance Bhandara: भंडारा जिले की भंडारा, तुमसर, पवनी और साकोली इन चारों नगरपालिकाओं में नगराध्यक्ष पद का फैसला होने के बाद अब असली सत्ता की चाबियां यानी उपाध्यक्ष और विषय समिति सभापति पदों के लिए जोरदार मोर्चाबंदी शुरू हो गई है। जीत का प्रमाणपत्र हाथ में मिलते ही अब गजट का इंतजार किया जा रहा है।
जिसके बाद प्रत्यक्ष रूप से सत्ता की बागडोर संभालने के लिए राजनीतिक दलों ने जोड़-तोड़ और जुगत लगानी शुरू कर दी है। भले ही नगराध्यक्ष किसी एक दल का चुना गया हो, लेकिन प्रशासन चलाने के लिए उसे सदन में बहुमत की आवश्यकता होती है। भंडारा जिले की इन 4 नगरपालिकाओं में वर्तमान में जबरदस्त राजनीतिक रोमांच देखने को मिल रहा है।
तुमसर नगर परिषद में सत्ता का समीकरण सबसे पेचीदा नजर आ रहा है। 25 सदस्यों वाले सदन में किसी भी प्रस्ताव को मंजूर करने के लिए 13 पार्षदों का संख्याबल आवश्यक है। यहाँ भाजपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजीत पवार गुट) दोनों ही 10-10 सीटों के साथ बराबरी पर हैं।
नवनिर्वाचित नगराध्यक्ष सागर गभने ने निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद अब राष्ट्रवादी कांग्रेस में प्रवेश कर लिया है, जिससे राष्ट्रवादी का संख्याबल अब 11 हो गया है। हालांकि बहुमत के लिए उन्हें अभी भी 2 और सदस्यों की आवश्यकता है। यदि भाजपा और राष्ट्रवादी की महायुति बनती है तो सत्ता की राह आसान होगी, अन्यथा दोनों दलों की नजर कांग्रेस के पार्षदों पर टिकी है।
पवनी में मतदाताओं की ओर से दिया गया जनादेश अत्यंत रोचक है। यहाँ नगराध्यक्ष पद पर राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजीत पवार गुट) की डॉ. विजया नंदुरकर ने जीत दर्ज की है, लेकिन सदन में भाजपा के पास 13 पार्षदों के साथ स्पष्ट बहुमत है। निर्दलीय नीलकंठ टेकाम के प्रवेश के बाद राष्ट्रवादी की संख्या 3 हो गई है।
नियमों के अनुसार भाजपा का उपाध्यक्ष और सभी सभापति चुना जाना लगभग तय है। ऐसे में नगराध्यक्ष को किसी भी विकास कार्य के प्रस्ताव को मंजूर कराने के लिए भाजपा की सहमति के बिना कोई विकल्प नहीं है। सत्ता की सुविधा के लिए यहाँ अब महायुति का राग अलापा जा रहा है।
साकोली में भाजपा ने नगराध्यक्ष पद तो जीत लिया है, लेकिन सदन में किसी भी दल के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है। यहाँ भाजपा 8, कांग्रेस 7, निर्दलीय 3, राष्ट्रवादी 1 और शिंदे सेना 1 के आंकड़े पर है।
भाजपा को सत्ता स्थापित करने के लिए यदि राष्ट्रवादी और शिंदे सेना का समर्थन मिल भी जाए, तो भी दो-तिहाई बहुमत जुटाना चुनौतीपूर्ण है। ऐसी स्थिति में 3 निर्दलीय पार्षद किंगमेकर की भूमिका में आ गए हैं और भाजपा को उनकी मनुहार करनी पड़ रही है।
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