छत्रपति संभाजी नगर (सौ. सोशल मीडिया )
Chhatrapati Sambhaji Nagar News: देवलाई क्षेत्र में जीवीपीआर कंपनी की ओर से बिछाई गई जलापूर्ति योजना के काम के लिए खोदे गए गड्ढे में गिरकर बालक की मौत के बाद विभागीय आयुक्त की समिति से उसके परिवार को क्षतिपूर्ति देने का आदेश उच्च न्यायालय ने दिया है।
न्या रवींद्र घुगे व न्या अश्विन भोबे की खंडपीठ ने मामले में संवेदना व्यक्त करते हुए शहर के अन्य इलाकों के धोखादायक गड्ढे भरने, तत्काल बैरिकेड् कर सूचना फलक लगाने व नागरिकों की बेशकीमती जान की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी कहा गया।
सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण से संबंधित अहम मुद्दा भी उपस्थित किया गया। इस पर कहा गया कि 9 जनवरी 2025 के आदेशा नुसार, मजिप्रा के मुख्य अभियंता व विभागीय आयुक्त का तबादला करने से पहले न्यायालय की अनुमति अनिवार्य है। बावजूद इसके 20 अगस्त, 2025 को मजिप्रा के मुख्य के प्रशासकीय अधिकारी ने मुख्य अभियंता मनीषा पलांडे को शहर की जल योजना व वॉटरग्रिड का काम सौंपा।
इस आदेश को चुनौती देते हुए पलांडे ने याचिका दाखिल की। इसके बाद 10 सितंबर 2025 को गुरव ने आर्थिक मापदंडों के अनुसार नए पत्र के जरिए काम का पुर्नबंटवारा किया। इसे भी पलांडे ने दीवानी आवेदन के जरिए चुनौती दी। सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने दोनों पत्रों को स्थगनादेश देते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे प्रकरण में न्यायालय की अनुमति लेने की अनिवार्यता है। यही नहीं, मजिप्रा को इस आदेशों के बारे में खुलासा करने की छूट भी दी गई।
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सुनवाई के दौरान मजिप्रा की ओर से वरिष्ठ विधिज्ञ राजेंद्र देशमुख, एड। विनोद पाटील, मनपा की ओर से एड संभाजी टोपे, न्यायालय के मित्र एड शंभुराजे देशमुख, कंपनी की ओर से वरिष्ठ विधिज्ञ आरएन धोर्डे, मूल याचिकाकर्ता अमित मुखेड़कर व सरकार की ओर से अतिरिक्त सरकारी वकील सुभाष तांबे ने पैरवी की।