-सीमा कुमारी
हर साल 14 अप्रैल को असम में ‘बोहाग बिहू’ (Bohag Bihu) का त्योहार मनाया जाता है। इस साल भी ये खास पर्व 14 अप्रैल को है। यह असम का एक लोकप्रिय त्योहार है। इस त्योहार के साथ असम में नये साल की शुरुआत होती है। ये पर्व मुख्य रूप से किसान भाइयों को समर्पित है।
इसलिए इस त्योहार को फसलों का त्योहार भी कहा जाता है। असम में एक वर्ष में तीन बार बिहु पर्व का पर्व मनाया जाता हैं बोहाग यानि बैसाख, माघ, और काटी के महीनों में। इसमें सबसे महत्वपूर्ण होता है- ‘बोहाग बिहू’, जो अप्रैल के मध्य में मनाया जाता हैं। बिहू पर ही खेती में पहली बार के लिए हल भी जोता जाता है। बोहाग बिहू असम और उत्तर-पूर्वी राज्यों में मनाया जाता है। इसे ‘रोंगाली बिहू’ या हित बिहू भी कहते हैं। ये खास पर्व 14 अप्रैल को है।
असमिया कैलेंडर के मुताबिक, बैसाख महीने से ही शुरू होता है और इस महीने का पहला त्यौहार होता है बिहू। यह पर्व सात दिन तक अलग-अलग रीति-रीवाजों के साथ मनाया जाता है। बैसाख महीने की संक्रांति से बोहाग बिहू शुरू हो जाता है। जिसमें पहले दिन को गाय बिहू कहा जाता है। इस दिन लोग अपनी गायों को कलई दाल और कच्ची हल्दी से नहलाते हैं। गायों को नहलाने के लिए ये चीजें रात में ही भिगो कर रख दी जाती हैं। उसके बाद गायों को लौकी, बैंगन आदि खिलाया जाता है। ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि इससे साल भर गाएं कुशलपूर्वक रहती हैं।
‘बोहाग बिहू’ त्यौहार के साथ ही असम के लोग नए साल की शुरुआत मानते हैं। यही वजह है कि इस दिन लोग पारंपरिक परिधान में पूरे जोश खरोश के साथ असम का पारंपरिक नृत्य ‘बिहू’ करते हैं। माघ बिहू अमूमन किसानों का त्यौहार माना जाता हैं। इस दिन किसान खेतों से फसलों की कटाई करते हैं और प्रकृति और ईश्वर से भविष्य में भी अच्छी पैदावार की कामना करते हुए धन्यवाद अदा करते हैं।
बिहू का दूसरा महत्व है कि इसी समय धरती पर वर्षा की पहली बूंदें पड़ती हैं जिससे पृथ्वी नए रूप से सजती है। इस दौरान नई फसल आने की तैयारी होती है। बिहू के अवसर पर युवक एवं युवतियां साथ-साथ ढोल, बांसुरी, पेपा, गगना, ताल इत्यादि के साथ अपने पारंपरिक परिधान में एक साथ बिहू करते हैं। कहा जाता है कि ढोल की आवाज से आसमान में बादल आ जाते हैं जिससे बारिश शुरू हो जाती है जिससे खेती अच्छी होती है। बिहू के समय में गांव में खेल-तमाशों का आयोजन किया जाता है।