
सीमा कुमारी
नई दिल्ली: हर साल अगहन महीने की पूर्णिमा तिथि वाले दिन ‘अन्नपूर्णा जयंती’ (Annapurna Jayanti) मनाई जाती है। इस साल ये शुभ जयंती 19 दिसंबर रविवार को है। माता अन्नपूर्णा से ही धरती पर अन्न की पूर्ति होती है। इसलिए अन्नपूर्णा माता का स्थान रसोईघर में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
हिंदू धर्म में घर की गृहणी को भी अन्नपूर्णा का स्थान दिया जाता है, क्योंकि घर में पूरे परिवार के लिए भोजन गृहणियों के द्वारा ही बनाया जाता है। इस दिन घर की महिलाओं या अन्न का अपमान भूलकर भी नहीं करना चाहिए। तो आइए जानते हैं ‘अन्नपूर्णा जयंती’ का महत्व समय और पूजा- विधि –
अन्न हमारे जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। अन्न के बिना इस जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। ‘अन्नपूर्णा जयंती’ का उद्देश्य लोगों को अन्न की महत्ता समझाना है। अन्न से हमें जीवन मिलता है, इसलिए कभी अन्न का निरादर नहीं करना चाहिए और न ही इसकी बर्बादी करनी चाहिए ।
‘अन्नपूर्णा जयंती’ के दिन रसोई की सफाई करनी चाहिए और गैस, स्टोव और अन्न की पूजा करनी चाहिए। साथ ही जरूरतमंदों को अन्नदान करना चाहिए। मान्यता है कि, इससे माता अन्नपूर्णा अत्यंत प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर विशेष कृपा बनाकर रखती है। ऐसा करने से परिवार में हमेशा बरक्कत बनी रहती है, साथ ही अगले जन्म में भी घर धन धान्य से भरा रहता है।
‘अन्नपूर्णा जयंती’ के दिन सुबह सूर्योदय के वक्त उठकर स्नान करके पूजा का स्थान और रसोई को अच्छी तरह से साफ करें और गंगाजल का छिड़काव करें ।
इसके बाद हल्दी, कुमकुम, अक्षत, पुष्प आदि से रसोई के चूल्हे की पूजा करें फिर माता अन्नापूर्णा की प्रतिमा को किसी चौकी पर स्थापित करें और एक सूत का धागा लेकर उसमें 17 गांठें लगा दें।
उस धागे पर चंदन और कुमकुम लगाकर मां अन्नपूर्णा की तस्वीर के सामने रखकर 10 दूर्वा और दस अक्षत अर्पित करें ।
अन्नपूर्णा देवी की कथा का पाठ करें। इसके बाद माता से अपनी भूल की क्षमा याचना करें और परिवार पर अपनी कृपा बनाए रखने की प्रार्थना करें ।
फिर सूत के धागे को घर के पुरुषों के दाएं हाथ में महिलाओं के बाएं हाथ की कलाई पर बांधें। पूजन के बाद किसी गरीब को अन्न का दान जरूर करें।






