विश्व कविता दिवस पर जानिए खास कविताएं (सौ.सोशल मीडिया)
World Poetry Day 2025: जिंदगी की कहानी में कविताओं का होना एक अलग रंग दे जाता है। हर किसी के जीवन में कविताएं अलग और महत्वपूर्ण स्थान रखती है और भावों को बयान करती है। जो बातें हम सीधे शब्दों में नहीं कह पाते उन्हें लयबद्ध पंक्तियों में पिरो देना ही कविता है। आज दुनियाभर में विश्व कविता दिवस मनाया जा रहा है जो दुनियाभर की कविताओं और इनमें छिपे भावों को परखता है।
आपको बताते चलें कि, चंद शब्दों में कविताएं दिल का हाल बयां कर देती है। कविताएं खोए हुए को मंजिल दिखा देती हैं तो टूटे हुए दिल का सहारा भी बनती हैं। यहां पर श्रेष्ठ कविताओं और उनके कवियों के प्रति सम्मान दर्शाने के लिए विश्व कविता दिवस मनाया जाता है। हर साल 21 मार्च के दिन विश्व कविता दिवस मनाया जाता है. यह दिन कविता के सौंदर्य, अभिव्यक्ति और अनूठी रचना को लोगों को तक पहुंचाने का प्रयास करता है।
आपको बताते चलें कि, विश्व कविता दिवस यानि साहित्य को समर्पित यह दिन को मनाने की शुरुआत साल 1999 में पेरिस में यूनेस्को के 30वें अधिवेशन से हुई थी जहां 21 मार्च को विश्व कविता दिवस घोषित किया गया था। यहां पर इस दिवस की थीम हर साल बदलती रहती है इसमें ही इस साल विश्व कविता दिवस की थीम (World Poetry Day Theme) ‘पीस एज ए ब्रिज फॉर पीस एंड इन्क्लूजन’ यानी ‘शांति और समावेश के लिए एक सेतु के रूप में कविता’ है।
1-चट्टान को तोड़ो वह सुंदर हो जाएगी – केदारनाथ सिंह
चट्टान को तोड़ो
वह सुंदर हो जाएगी
उसे और तोड़ो
वह और, और सुंदर होती जाएगी
अब उसे उठाओ
रख लो कंधे पर
ले जाओ किसी शहर या क़स्बे में
डाल दो किसी चौराहे पर
तेज़ धूप में तपने दो उसे
जब बच्चे आएँगे
उसमें अपने चेहरे तलाश करेंगे
अब उसे फिर से उठाओ
अबकी ले जाओ किसी नदी या समुद्र के किनारे
छोड़ दो पानी में
उस पर लिख दो वह नाम
जो तुम्हारे अंदर गूँज रहा है
वह नाव बन जाएगी
अब उसे फिर से तोड़ो
फिर से उसी जगह खड़ा करो चट्टान को
उसे फिर से उठाओ
डाल दो किसी नींव में
किसी टूटी हुई पुलिया के नीचे
टिका दो उसे
उसे रख दो किसी थके हुए आदमी के सिरहाने
अब लौट आओ
तुमने अपना काम पूरा कर लिया है
अगर कंधे दुख रहे हों
कोई बात नहीं
यक़ीन करो कंधों पर
कंधों के दुखने पर यक़ीन करो
यक़ीन करो
और खोज लाओ
कोई नई चट्टान!
2-बयां हमारी चिड़िया रानी – महादेवी वर्मा
बयां हमारी चिड़िया रानी
तिनके लाकर महल बनाती,
ऊँची डाली पर लटकाती,
खेतों से फिर दाना लाती,
नदियों से भर लाती पानी।
तुझको दूर न जानें देंगे,
दानों से आँगन भर देंगे,
और हौज में भर देंगे हम,
मीठा-मीठा ठंडा पानी।
फिर अंडे सेयेगी तू जब,
निकलेंगे नन्हें बच्चे तब,
हम लेंगे उनकी निगरानी।
फिर जब उनके पर निकलेंगे,
उड़ जाएँगे बया बनेंगे,
हम तब तेरे पास रहेंगे
तू मत रोना चिड़िया रानी।
3-निर्झर – मैथिलीशरण गुप्त
शत-शत बाधा-बंधन तोड़,
निकल चला मैं पत्थर फोड़।
प्लावित कर पृथ्वी के पर्त्त,
समतल कर बहु गह्वर गर्त्त,
दिखला कर आवर्त्त-विवर्त्त,
आता हूँ आलोड़ विलोड़,
निकल चला मैं पत्थर फोड़।
पारावार-मिलन की चाह,
मुझे मार्ग की क्या परवाह?
मेरा पथ है स्वत: प्रवाह,
जाता हूँ चिर जीवन जोड़,
निकल चला मैं पत्थर फोड़।
गढ़ कर अनगढ़ उपल अनेक,
उन्हें बना कर शिव सविवेक,
करके फिर उनका अभिषेक,
बढ़ता हूँ निज नवगति मोड़,
निकल चला मैं पत्थर फोड़।
हरियाली है मेरे संग,
मेरे कण-कण में सौ रंग,
फिर भी देख जगत के ढंग,
मुड़ता हूँ मैं भृकुटि मरोड़,
निकल चला मैं पत्थर फोड़।
धरकर नव कलरव निष्पाप,
हर कर संतापों का ताप,
अपना मार्ग बनाकर आप,
जाऊँ सब कुछ पीछे छोड़,
निकल चला मैं पत्थर फोड़।
है सबका स्वागत-सम्मान,
करे यहाँ कोई रस-पान,
मेरा जीवन गतिमय गान,
काल! तुझी से मेरी होड़,
निकल चला मैं पत्थर फोड़।
4-तुम्हारे साथ रहकर – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गई हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गई है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकांत नहीं
न बाहर, न भीतर।
हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने छोटे हो गए हैं
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख
आशीष दे सकता हूँ,
आकाश छाती से टकराता है,
मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे महसूस हुआ है
कि हर बात का एक मतलब होता है,
यहाँ तक कि घास के हिलने का भी,
हवा का खिड़की से आने का,
और धूप का दीवार पर
चढ़कर चले जाने का।
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे लगा है
कि हम असमर्थताओं से नहीं
संभावनाओं से घिरे हैं,
हर दीवार में द्वार बन सकता है
और हर द्वार से पूरा का पूरा
पहाड़ गुज़र सकता है।
शक्ति अगर सीमित है
तो हर चीज़ अशक्त भी है,
भुजाएँ अगर छोटी हैं,
तो सागर भी सिमटा हुआ है,
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है,
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है।
5-चीनी चाय पीते हुए – अज्ञेय
चाय पीते हुए
मैं अपने पिता के बारे में सोच रहा हूँ।
आपने कभी
चाय पीते हुए
पिता के बारे में सोचा है?
अच्छी बात नहीं है
पिताओं के बारे में सोचना।
अपनी कलई खुल जाती है।
हम कुछ दूसरे हो सकते थे।
पर सोच की कठिनाई यह है कि दिखा देता है
कि हम कुछ दूसरे हुए होते
तो पिता के अधिक निकट हुए होते
अधिक उन जैसे हुए होते।
कितनी दूर जाना होता है पिता से
पिता जैसा होने के लिए!
पिता भी
सवेरे चाय पीते थे
क्या वह भी
पिता के बारे में सोचते थे—
निकट या दूर?