प्रतीकात्मक तस्वीर
सीमा कुमारी
नवभारत डिजिटल टीम: बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक ‘दशहरा’ (Dussehra 2023) का महापर्व आज 24 अक्टूबर, मंगलवार को पूरे देश भर में मनाया जाएगा। परंपरा के अनुसार, हम देखते हैं कि हर साल दशहरा जीतने के बाद दो पत्तियां दोस्तों, परिजनों, रिश्तेदारों को बांट कर दशहरे की शुभकामनाएं दी जाती है और बुजुर्गों से आर्शीवाद लिया जाता है। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, इस साल आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 23 अक्टूबर को शाम 05:44 से शुरू होगी और उदय तिथि के कारण 24 अक्टूबर को दशहरा पर्व मनाया जाएगा। ऐसे में आइए जानें दशहरे पर बांटी जाने वाली सोना पत्ती के महत्व के बारे में
ज्योतिषियों के अनुसार, दशहरे पर जिन सोन पत्तियों को बांटा जाता है, इसे पौराणिक ग्रंथों में ‘शमी के पेड़ की पत्ती’ बताया गया है। रामायण में जिक्र है कि भगवान राम ने लंका विजय से पहले शमी के पेड़ की पूजा की थी। ऐसा माना जाता है कि शमी के पेड़ में भगवान कुबेर का भी वास होता है। शमी का पेड़ जीवन में सुख, समृद्धि और विजय की प्राप्ति का आशीर्वाद देता है।
शमी के पेड़ की खासियत बताई है कि यह पेड़ उस वर्ष में ज्यादा फलता-फूलता है, जिस वर्ष सूखा पड़ने वाला होता है। ऐसे में हर किसान को अपने खेत की सीमा पर शमी का पेड़ जरूर लगाना चाहिए। यह पेड़ खेती-किसानी में मौसम विपदा के बारे में पहले ही संकेत दे देता है।
पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, सोना पत्ती शमी के पेड़ को ही कहा गया है, लेकिन मालवांचल में ‘अस्तरा’ की पत्तियों का वितरण किया जाता है। झाबुआ जिले में इसे हेतरी या सेंदरी के नाम से जाना जाता हैं। कुछ स्थानों पर सोना पत्ती के लिए कठमुली व झिंझोरी का भी इस्तेमाल किया जाता है। संस्कृत में इसे अश्मंतक,यमलपत्रक कह कर पुकारा जाता है। वास्तव में इस दौरान ऐसे पत्तों का बांटा जाता है, जिसमें दो पत्ते एक साथ जुड़े होते हैं।