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-सीमा कुमारी
बकरीद (Bakrid) को ईद-उल-अजहा के नाम से भी पुकारा जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जु-अल-हिज्ज में यह पर्व मनाया जाता है। बकरीद का त्योहार रमजान (Ramadan) समाप्त होने के 70 दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन जानवरों की कुर्बानी देने की परंपरा है। इस साल ईद-उल-अजहा यानी बकरीद इसी महीने 10 जुलाई, रविवार को मनाई जाएगी। आइए जानें इसका महत्व।
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, बकरीद यानी, ईद-उल-अजहा का त्योहार जु-अल-हिज्ज महीने के 10वें दिन मनाया जाता है। इंग्लिश कैलेंडर के मुताबिक, इस साल बकरीद का त्योहार10 जुलाई को मनाया जाएगा। गौरतलब है कि चांद दिखने के 10वें दिन मनाया जाता है और ईद उल अजहा, यानी बकरीद। ये भी जान एल इन कि यह ईद-उल-फित्र के दो महीने, नौ दिन बाद मनाई जाती है।
ईद-उल-अजहा (Eid Al Adha 2022) यानी बकरीद के दिन मुस्लिम धर्म के मानने वाले लोग अपने घरों में पहले से पाले हुए बकरे की कुर्बानी देते हैं। जिनके घर बकरा नहीं होता है, वे पर्व से कुछ दिन पहले बकरा खरीदकर घर ले आते हैं। इस दिन बकरे की कुर्बानी देने के बाद मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। पहला हिस्सा फकीरों को दिया जाता है, दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों को, और तीसरा हिस्सा घर में पकाकर खाया जाता है।
बकरीद मनाने के पीछे हजरत इब्राहिम के जीवन से जुड़ी हुई एक घटना है। कहते हैं कि हजरत इब्राहिम खुदा के नेक बंदे थे और वे खुदा पर बहुत भरोसा करते थे। एक बार हजरत इब्राहिम ने सपना देखा वे अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे हैं, जिसको उन्होंने खुदा का संदेश माना। इसके बाद उन्होंने खुदा की इच्छा को मानकर, खुदा की राह पर कुर्बानी देने का फैसला लिया। लेकिन, तब खुदा ने उनको अपने बेटे की जगह किसी एक जानवर की कुर्बानी देने का पैगाम दिया। तब उन्होंने खुदा के संदेश को मानते हुए अपने सबसे प्रिय मेमने की कुर्बानी दी। तब से ईद-उल-अजहा के दिन बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा शुरु हुई जिसे ‘बकरा-ईद’ यानी बकरीद के नाम से जाना जाता है।