सीमा कुमारी
नवभारत डिजिटल टीम: सनातन धर्म में छठ पूजा (Chhath Puja 2023) को महत्वपूर्ण त्योहारों में गिना जाता है। इस वर्ष छठ पर्व की शुरुआत आज यानी 17 नवंबर, शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ हो रही है। इसके बाद क्रमशः खरना, शाम का अर्घ्य और सुबह का अर्घ्य निवेदित किया जाएगा। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में छठ पर्व को काफी उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, छठ पूजा में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि एकमात्र सूर्य ही अकेले ऐसे देवता हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से नित्य हमें दर्शन देते है। इसी वजह से सूर्यदेव की पूजा भी विशेष फलदायी होती है।
सनातन धर्म में त्रेता युग से छठ पूजा मनाई जाती है। शास्त्रों की मानें तो, सर्वप्रथम माता सीता ने छठ पूजा की थी। उस समय से हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक छठ पूजा मनाई जाती है। इस वर्ष 17 नवंबर से लेकर 20 नवंबर तक छठ पूजा है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं करती हैं। साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि पाने हेतु पुरुष भी छठ पूजा में सूर्य देव की उपासना करते हैं। इस दौरान पुरुष नदी या सरोवर में खड़े होकर सूर्य देव की उपासना करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि छठ पूजा क्यों मनाई जाती है और कब से मनाई जाती है ? आइए जानें छठ पूजा की कथा
ज्योतिषियों की मानें तो द्वापर युग में जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब कुष्ट रोग से पीड़ित थें। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें सूर्य उपासना की सलाह दी। कालांतर में साम्ब ने सूर्य देव की उपासना की। सूर्य देव की उपासना करने से साम्ब को कुष्ट रोग से मुक्ति मिली थी। इसके पश्चात, साम्ब ने 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण करवाया था। इनमें सबसे प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर है, जो ओडिशा में है। इसके अलावा, एक मंदिर बिहार के औरंगाबाद में है। इस मंदिर को देवार्क सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि चिरकाल में जब देवताओं और असुरों के मध्य युद्ध हुआ, तो इस युद्ध में देवताओं को हार का सामना करना पड़ा। उस समय देव माता अदिति ने इसी स्थान पर (देवार्क सूर्य मंदिर) पर संतान प्राप्ति हेतु छठी मैया की कठिन तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर छठी मैया ने अदिति को तेजस्वी पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। कालांतर में छठी मैया के आशीर्वाद से आदित्य भगवान का अवतार हुआ। आदित्य भगवान ने देवताओं का प्रतिनिधित्व कर देवताओं को असुरों पर विजय श्री दिलाई थी। कालांतर से पुत्र प्राप्ति हेतु छठ पूजा की जाती है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से सुख और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है।