
(प्रतीकात्मक तस्वीर)
FPI In Share Market: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस साल 26 दिसंबर तक भारतीय पूंजी बाजार से 74, 822 करोड़ रुपये की शुद्ध निकासी है। शुद्ध निकासी का मतलब है कि उन्होंने जितना पैसा बाजार में लगाया है उससे 74,822 करोड़ रुपये ज्यादा निकाले हैं। अकेले दिसंबर में अबतक 29,571 करोड़ रुपये की निकासी की गयी है जो जनवरी के बाद सबसे अधिक है। साल के 12 में से आठ महीने एफपीआई बिकवाल रहे हैं जबकि शेष चार महीने वे शुद्ध रूप से लिवाल रहे हैं।
सीडीएसएल के आंकड़ों के अनुसार, पूरे साल के दौरान एफपीआई ने शुद्ध रूप से 1,52,227 करोड़ रुपये की इक्विटी बेची। वहीं, उन्होंने जमकर डेट में खरीदारी की। उन्होंने 72,893 रुपये के डेट की शुद्ध खरीदी की।
रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशी निवेशकों ने म्यूचुअल फंड में शुद्ध रूप से 10,877 करोड़ रुपये का निवेश किए। हाइब्रिड उपकरणों में भी उन्होंने 1,442 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया। दिसंबर में एफपीआई ने 14,734 करोड़ रुपये की इक्विटी की शुद्ध बिकवाली की। महीने के दौरान डेट, हाइब्रिड उपकरणों और म्यूचुअल फंड में भी उनका निवेश नकारात्मक रहा।
इस सप्ताह शेयर बाजार में निवेशकों की धारणा व्यापक आर्थिक आंकड़ों, वैश्विक रुझानों और विदेशी निवेशकों की कारोबारी गतिविधियों से प्रभावित होगी। विश्लेषकों ने कहा कि साथ ही वाहन बिक्री के आंकड़ों पर भी करीबी नजर रखी जाएगी। इस साल के कुछ कारोबारी सत्र ही बाकी रहने के कारण भारतीय शेयर बाजारों के सीमित दायरे में रहने का अनुमान है, हालांकि रुझान सकारात्मक रह सकता है। पिछले सप्ताह बीएसई सेंसेक्स 112.09 अंक या 0.13 प्रतिशत चढ़ा, जबकि निफ्टी 75.9 अंक या 0.29 प्रतिशत बढ़ा।
भारतीय शेयर बाजार से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की लगातार निकासी निवेशकों और विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। इस साल 12 में से 8 महीनों में विदेशी निवेशकों का ‘बिकवाल’ रहना कई बड़े वैश्विक और घरेलू कारणों का परिणाम है।
निकासी के मुख्य कारण:
चीन का आकर्षण: चीनी सरकार द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए घोषित किए गए बड़े प्रोत्साहन पैकेजों (Stimulus Packages) के कारण विदेशी निवेशक भारत जैसे महंगे बाजार से पैसा निकालकर चीन के सस्ते शेयरों में लगा रहे हैं। इसे ‘Buy China, Sell India’ की रणनीति कहा जा रहा है।
महंगा वैल्यूएशन: भारतीय शेयर बाजार अपने ऐतिहासिक उच्चतम स्तर के करीब है। अन्य उभरते बाजारों की तुलना में भारत का पीई रेशियो (P/E Ratio) काफी अधिक है, जिससे विदेशी निवेशकों को यहाँ मुनाफावसूली करना बेहतर लग रहा है।
अमेरिकी बॉन्ड यील्ड और डॉलर: अमेरिका में ब्याज दरों को लेकर अनिश्चितता और डॉलर इंडेक्स की मजबूती के कारण निवेशक जोखिम वाले उभरते बाजारों (Emerging Markets) से पैसा निकालकर सुरक्षित अमेरिकी बॉन्ड में निवेश कर रहे हैं।
कमजोर कॉर्पोरेट नतीजे: हालिया तिमाहियों में कई बड़ी भारतीय कंपनियों के वित्तीय नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे हैं, जिससे निवेशकों के भरोसे को चोट पहुंची है।
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हालांकि, घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) और रिटेल निवेशकों के दम पर बाजार टिका हुआ है, लेकिन लंबी अवधि की तेजी के लिए विदेशी निवेशकों का वापस आना जरूरी है। फिलहाल, वैश्विक अस्थिरता और भू-राजनीतिक तनाव ने उन्हें ‘वेट एंड वॉच’ की स्थिति में डाल दिया है।






