पंडित छन्नूलाल मिश्र, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Pandit Chhannulal Mishra Passes Away: भारतीय शास्त्रीय संगीत के मशहूर गायक गायक पंडित छन्नूलाल मिश्रा का आज सुबह 4:15 बजे निधन हो गया। उन्होंने 91 वर्ष की उम्र में वाराणसी में आखिरी सांस ली। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइस में उनका इलाज चल रहा था। उनके निधन से संगीत जगत में शोक में डूब गया है।पंडित छन्नूलाल मिश्रा ने खयाल और पूर्वी ठुमरी शैली के शास्त्रीय गायन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया था। बनारस के मशहूर संगीत घराने के नींव रहे पंडित मिश्र की निधन के बाद सवाल उठ रहा है कि शास्त्रीय संगीत का अगला वारिस कौन होगा। आइए विस्तार से जानते हैं।
भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहरी परंपरा में बनारस घराना हमेशा से अपनी विशेष पहचान रखता आया है। ठुमरी, दादरा, चैती और भजन गायन के लिए यह घराना विश्वभर में प्रसिद्ध रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में इस घराने से जुड़े दिग्गज कलाकारों के एक-एक कर चले जाने से इसकी कड़ी कमजोर होती जा रही है। पंडित छन्नूलाल मिश्र बनारस घराने की उस विरासत के अंतिम प्रमुख स्तंभों में से एक थे, जिन्होंने दशकों तक भारतीय संगीत को वैश्विक मंच पर पहुंचाया। भक्ति रस और शास्त्रीयता का अनोखा संगम उनकी गायकी की सबसे बड़ी खूबी थी।
उनकी आवाज़ में वह मिठास और गहराई थी जो सीधे श्रोताओं के दिल को छू जाती थी। चाहे ठुमरी हो या भजन। वे हर रचना को अपने विशिष्ट अंदाज़ से जीवंत कर देते थे। पंडित छन्नूलाल मिश्र के निधन के बाद यह सवाल और गहराता जा रहा है कि बनारस घराना अब किस दिशा में जाएगा। नए कलाकार जरूर सामने आ रहे हैं, लेकिन घराने के उस पुराने अनुशासन और गहराई को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। डिजिटल दौर में शास्त्रीय संगीत की लोकप्रियता कम होती दिखाई देती है, जबकि हल्के-फुल्के गानों का असर तेजी से बढ़ रहा है। संस्थागत स्तर पर भी बनारस घराने को वह सहयोग नहीं मिल रहा, जिसकी आज आवश्यकता है।
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विशेषज्ञ मानते हैं कि शास्त्रीय संगीत का भविष्य तभी सुरक्षित रह सकता है जब युवा पीढ़ी को न केवल प्रशिक्षित किया जाए, बल्कि उन्हें मंच और अवसर भी दिए जाएं। साथ ही, सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। पंडित छन्नूलाल मिश्र का जाना सिर्फ एक कलाकार का निधन नहीं है, बल्कि भारतीय संगीत की उस धरोहर का कमजोर होना है, जिसने सदियों से दुनिया को रस और रागों से मोहित किया। बनारस घराने की परंपरा को बचाना अब आने वाली पीढ़ियों और समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है।